पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१३३

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बम्बई से चालान मंगाता हूँ। लेकिन मेरा बकाया नज़राना ?" "कौल के मुताबिक ज़रूर मिल जायगा। पहले वादा तो पूरा हो।" "बेफिक्र रहो। तुम मेरे देहाती रिश्तेदार बन जाना, और मजे में एक ठौर पड़े खुर्राटे भरना।" "ऐसा ही होगा। खातिर जमा रखो।" "बई चौधरी, रिजक क़सम, दग़ा की तो छुरा कलेजे के पार कर दूंगा।" "दग़ा करके अपना ही तो काम बिगाडूंगा । यह भी समझते हो ?" वो साब लोग आ रहे हैं । देखो विन की ही आवाज़ है । अब चुप- चाप पड़ रहो।" इसी समय दो अंग्रेज़ दुकान में घुसे । उनके साथ एक हिन्दुस्तानी मुसलमान था। चौधरी ने पहचान लिया, वह बब्बू खाँ नवाब है। नशे में धुत । भय से आँखें फैली हुई ।" साहब लोगों ने मोढ़े पर बैठते हुए इधर-उधर देख कर चौधरी की ओर संकेत करके पूछा-"यह कौन है ?" "मेरा जिग्री यार कल्लू है साब, जूजा घर में नई थी, बैठे-बैठे कुछ ऐसी घबराई हुई तुम जानो एकला आदमी । दिल में केया, चल वई जरा जुआ मैजिद तोड़ी सैल कर आवें। घर से निकला तो मेरा यार अपने मकान के दरवज्जे पर खड़ावा था। मैं भपक के अगाडू बढ़ा और केया, क्यों बई कल्लू, सैल को चल रिया है या नई। ये बोला-हाँ । बस हम खरामा-खरामा सैल करके आरिए है। आते ही अंटाढार हो गया । अब सुबू उठेगा । साब, सूर ही मरे जो जूठ बोले ।" "वैल, यह बखशीश लो। और इस आदमी को अपने घर में अभी बन्ड रखो। भागेगा टो, तुम कू साब लोग गोली से उड़ा देगा । समझा, बड़ा साब का हुक्म है।" "क्या मजाल साब, मुर्दे की टाँग तोड़ दूं, निसा खातिर रहो।" इसी बीच बब्बू खाँ ज़रा होश में आया। मालूम होता था, उसे ,