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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१३४

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बेहद शराब पिलाई गई थी। और बहुत डराया गया था। उसने भयभीत नेत्रों से साहब लोगों की ओर देख कर कहा—साहब हम को घर जाने दीजिए, खुदा गवाह है, हम दग़ा नहीं करेंगे। मैं इज्जतदार रईस हूँ।" "टुम बड़ज़ात हाय । बड़ा साहेब बोला है, अभी टुम को कैड में रहना होगा। भागेगा टो तुम्मारा घर का सब औरट-मर्ड तोप से उड़ा डिया जायगा।" "लेकिन हम भाग के कहाँ जायगा साहेब, हम को छोड़ दीजिए।" "अबी नई, जब टक वह डाकू होल्कर सहारनपुर में है । टुम कैड रहेगा।" साहब लोगों ने अपने हाथों से नवाब को उस कोठरी में बंद कर ताला जड़ दिया और हुसेनी को सख्त ताकीद करके चले गए। थोड़ी देर तक चौधरी उसी तरह चुपचाप औंधे मुँह पड़े रहे। फिर उठ कर उन्होंने कहा-हुसेनी मियाँ, यह अपना बक़ाया नज़राना लो, और मुझे जरा अकेले में मियाँ से बातें करने दो। उन्होंने एक छोटी-सी अशफियों की थैली हुसेनी की गोद में फैंक दी । "लेकिन चौधरी बई, ऐसा न हो कि तुम कैदी को ले भागो। और ये साले बन्दर मेरी दूकान को आग लगा दें।" "खातिर जमा रखो मियाँ, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। बस मैं ज़रा मियाँ से बातें करूँगा।" हुसेनी बाहर से ताला बन्द करके चला गया। चौधरी ने नवाब की ओर मुखातिब होकर कहा-"मिज़ाज अच्छे हैं, नवाब साहेब।" "तुम कौन हो भई, दोस्त या दुश्मन । खुदा दोनों से बचाए ।" "आपको इस वक्त दोस्त की ज़रूरत है या दुश्मन की।" "खुदा जानता है भई, ज़रूरत तो दोस्त की है। "किस लिए ?" "इस दोज़ख से जो निकाल ले जाय ।" "तो सुना नहीं आपका घर-बार तोप से उड़ा दिया जायगा ।" १३७