पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१३५

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"खुदा की मार इन फिरंगियों पर, आखिर ये चाहते क्या हैं ?" "यह तो आप ही बताइए । क्यों यहाँ आपको बन्द किया गया है।" "वे कहते हैं कि तुम होल्कर के पिट्ठू हो, मैं कहता हूँ, ग़लत , बात है।" "प्रापतो श्रीमन्त होल्कर से बिल्कुल वास्ता नहीं रखते ?" "लाहौल पढ़ो म्या, क्यों मेरी गर्दन फिरंगियों के हाथ में फंसाते हो।" "मैं तो आपको आजाद करना चाहता हूँ।" "वह किस तरह ।" "एक शर्त पर।" "कौन-सी शर्त ।" "कि आप श्रीमन्त होल्कर की मदद करें।" "होल्कर मुझे क्या देंगे?" "आपकी जानोमाल-इज्जत और खानदान की सलामती का वादा।" "किस तरह ?" "जिस तरह आप चाहें । श्रीमन्त जानते हैं कि इधर के रुहेले सरदार आपके रिश्तेदार हैं । वे इस समय असंगठित हैं। इसी से फिरंगियों ने एक एक करके आप सबको परकैच किया हुआ है। आप यदि सब मिल कर श्रीमन्त होल्कर सरकार की मदद करें, तो फिरंगियों का मुल्क से मुंह काला किया जा सकता है। वरना सब रईसों की यही दशा होगी जो आपकी हो रही है। "आखिर होल्कर चाहते क्या हैं ?" "पांच हजार सवार, जिनका पूरा खर्च भी आप ही को उठाना होगा।" "लाहौल पढ़ो म्या, मैं इतने सवार कहाँ से लाऊँगा। इससे तो फ़िरंगियों की अमलदारी अच्छी है।" "तभी तो आप यहाँ कैदी बने हैं।"