पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१३७

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RANASI "जाओं, जाओ, अपना काम देखो । वरना सिर धड़ पर नहीं रहेगा। अपना नफा नुकसान नवाब बब्बू खाँ समझते हैं ?" चौधरी ने और बात नहीं की, वह निराश भाव से उठ कर कोठरी से बाहर हो एक अंधेरी गली में घुस गए। '

२१:

शहनशाहे हिन्द और अंग्रेज रेजीडेन्ट बादशाह की शारीरिक और मानसिक दशा ऐसी न थी कि वह इस दरबार की ज़हमत को बर्दाश्त कर सके । खास कर जब कर्नल आक्टर लोनी-रेजीडेन्ट ने सुबह ही हाज़िर हो कर बादशाह से लार्ड लेक के सब मनसूवे बताए तो बादशाह तलमला उठा । उसने कहा-"साहब, इस अन्धे और कैदी बूढ़े अपाहिज को अब क्यों उसके नौकरों के सामने ज़लील किया जाता है, किस लिए अब ये झूठ-मूठ के तमाशे अाँख वालों को दिखाए जाते हैं। शुक्र है खुदा का—कि मेरी आँखें न रहीं, और मैं वह वेअदबियाँ अपनी आँखों से न देख सकूँगा, जो आज तक शहनशाहे हिन्द के सामने नहीं हुई, और तैमूरी खानदान जिन्हें देखने का प्रादी नहीं है।" "लेकिन जहाँपनाह ऐसा क्यों सोचते हैं । लार्ड महोदय का यह इरादा मुतलक़ नहीं है कि आप की तौहीन हो, वे तो उन सब वादों को दुहराने और हुजूर को इस बात का यक़ीन दिलाने के लिए यह दरबार कर रहे हैं कि कम्पनी सरकार के साथ हुजूर का जो इक़रार हुआ है, उसकी वे सब शर्ते-जिन पर हुजूर को शक है-ज़रूर पूरी की जाएंगी- बशर्तेकि आप की तरफ़ से कोई वादा-खिलाफ़ी की बात न पैदा हो जाय । जनरल महोदय यही घोषणा तो इस दरबार में सरे-आम करना चाहते हैं।" "वे जो चाहें करें, मग़र यह समझ लें कि मैं बेकस हूँ। यदि मुझे धोखा हुआ तो मैं कहीं का न रहूँगा। इसके अलावा मुसलमान यह बर्दाश्त भी न करेंगे।" १४०