पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१३८

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"यह तो हुजूर, धमकी की बात है । आप को इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि कम्पनी सरकार ने आप को बारह लाख रुपया साल की पैन्शन दी है।" "दी है या देने का वादा किया है, यह साफ़-साफ़ नहीं कहा जा सकता। फिर वह रक़म तो मेरी ही सल्तनत की आमदनी का छोटा-सा हिस्सा है।" "जब हुजूरे-पाला इस कदर शाकी हैं, तो मुझे कहना ही पड़ेगा कि जहाँपनाह इस बात को भूल गए हैं कि अंग्रेज़ी ने आप को और आप की सल्तनत को मराठों के पंजों से छुड़ाया है।" "लेकिन अपने पंजों में गंस लिया है। मैं नहीं जानता कि पुराने कैद करने वाले मराठे ज्यादा अच्छे थे-कि ये फ़िरंगी।" "तो हुजूर, अब भी यदि मराठों को पसन्द फ़र्माते हैं तो आप को बखैर उनके पास पहुँचाया जा सकता है।" "और मेरी सल्तनत ?" "वह तो हम ने तलवार के ज़ोर पर फ़तह की है। न पाप से न मराठों से हमें भीख में मिली है। आप उन से मिलकर खुशी से तलवार उठाइए-और जोर आजमाई कीजिए।" "यह आप शहनशाहे हिन्द को चुनौती दे रहे हैं ?" "नहीं हुजूर, जो बात सच है वही अर्ज़ कर रहा हूँ। मराठों के इस्तकबाल के लिए हमारी एक लाख तलवार तैयार हैं। यदि हुजूर को अंग्रेज़ों पर भरोसा नहीं है, तो हम खुशी से आप का शाही इस्तकबाल उसी तरह करते हैं जैसा मराठों का करना चाहते हैं।" "लेकिन मैं ने तो मराठों को दिल्ली से निकाल बाहर करने में अंग्रेज़ों को मदद दी है।" "तो अंग्रेजों ने भी हुजूर की जानोमाल की हिफ़ाज़त का जिम्मा लिया है, और एक माकूल रक़म की पैन्शन बैठे बिठाए देना मंजूर किया है।" “खैर, तो मैं यह चाहता हूँ कि मेरे साथ जो वादे किए गए हैं-वे पूरे हों।" १४१