पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१६

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इसी समय रूजवेल्ट ने अमेरिका के सिंहासन को सुशोभित किया। यह पहला अमेरिकन राष्ट्रपति था जिसने दुनिया के मामलों में खुल कर हिस्सा लिया। पर, अब दुनिया बदल गई थी। समाजवाद जन्म तो ले चुका था, पर अभी वह पूंजीवाद से ही उलझ रहा था। इंगलैण्ड ने एक बार भारत का सोना लूट कर सिर उठाना चाहा, पर बेकार । ब्रिटिश पार्लमेंट अब पूंजीवाद और लोकसत्ता का अखाड़ा बन रही थी। भारत में हजारों आदमी जेलों में सड़ रहे थे। गांधीजी यरवदा जेल में बन्द थे। दमन जोरों पर था। यतीन्द्र ने जेल में भूखों रह कर प्राण दे दिए थे। सीमान्तों पर ब्रिटिश विमान बम बरसा रहे थे। दक्षिणी अफ्रीका में जातीय द्वेष और आर्थिक संघर्ष ने ग़ज़ब ढाया था । यही हाल पूर्वी अफ्रीका का था । जब से केनिया में सोना निकला था, अफ्रीकियों के दुभाग्य में चार चांद लग गए थे। मिश्र में आजादी की बेचैनी फैली थी। दक्षिण- पूर्वी एशिया के देशों-इन्डोनेशिया, हिन्दचीन, जावा-सुमात्रा, डचइंडीज़ और फिलिपाइन द्वीपों में विदेशी शासन का जुआ उतार फेंकने की जद्दो- जहद चल रही थी। चीन में जापान क़त्ले आम कर रहा था । जापान के हौसले बढ़े हुए थे, और वह विश्व साम्राज्य के सुपने देख रहा था। पर उसकी सब से बड़ी बाधा सोवियत रूस थी, जो इस समय समूचे उत्तरी एशिया में एक संसार का निर्माण कर रहा था । वह एक प्रकार से लड़खड़ाते सभ्य संसार को चुनौती दे रहा था । जहाँ मंदी और बेकारी पूंजीवाद का गला घोंट रही थी। सोवियत संघ के इलाकों में आशा, शक्ति और उत्साह के अंकुर फूट रहे थे। संयुक्त राज्य अमेरिका पर संकटों के बादल उमड़ रहे थे । इंगलैण्ड अब समूचे संसार का मुखिया नहीं रह गया था । उस की लहरों पर हुकूमत खत्म हो चुकी थी। वह समूची दुनिया से सिकुड़ कर अपने साम्राज्य में सीमित हो गया था। और अब वह साम्राज्य भी डगमग- डगमग हो रहा था । हिटलर और उसके साथी अब युद्ध की भाषा बोल रहे थे। संसार के सारे देश आर्थिक राष्ट्रवाद की राह पर दौड़ कर युद्ध- स्थली पर एकत्र होते जा रहे थे । घटनाएं अटल भाग्य की भाँति संसार १६