पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१७

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को उधर ही धकेले लिए जा रहीं थीं, जहाँ सोने के घेरों के महाकुण्ड बनाए गए थे। जिन में मनुष्य का ताज़ा खून भरा जाने वाला था। और अन्त में वे सोने के घेरे के बने हुए महाकुण्ड बारह करोड़ मनुष्यों के रक्त से भरे गए। जिन में हिटलर और मुसोलिनी डूब मरे । पर उनका वह खून से सींचा हुआ राष्ट्रवाद दुनिया के मनुष्यों को कंगाल और तबाह करने के लिए अब भी कायम है। और वह समूचे नृ-वंश को खींच कर भावी महायुद्ध की रंगभूमि पर खींचे लिए जा रहा है । जहाँ अब सोने के कुण्ड खून से न भरे जाएंगे। खून और सोना पिघल कर एक नई धातु को जन्म देंगे। संसार के सारे नगर, जनपद विध्वंस हो जाएंगे। संसार का सारा जीवन समाप्त हो जायगा। रह जाएंगे इस नई धातु के बने असंख्य पर्वतों के शृंग, जिनका रंग लाल और पीले रंग का मिश्रण होगा । और जो सूने संसार में सूर्य की धूप में व्यर्थ चमकते रहेंगे। जिन्हें देखने वाली सब आँखें फूट चुकी होंगी, समझने वाले सब हृदय जल कर खाक हो चुके होंगे । सब जीव अपने को नष्ट करके जीवन का मूल्य अदा कर चुके होंगे। यही सोना और खून का सम्मिलित रूप होगा, जो आज मिल कर एक होने को बेचैन है। खून मनुष्य की रगों में बह रहा और सोना उसके शरीर पर लदा हुआ है । जब तक ये नसें चीर कर साफ नहीं कर दी जाती, खून की एक-एक बूंद उन में से बाहर नहीं निकाल ली जाती, तब तक सोने को चैन कहाँ !!! २०