पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१६२

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को अपना सामन्त बना कर सब-सीडीयरी सन्धि के जाल में फांस कर परकैच कर लिया। अब उसे सिंधिया को अन्तिम क़िस्त मात देना शेष था । अब भी सिंधिया अन्य सब देशी नरेशों से कहीं अधिक शक्तिशाली था। उस की सेना अभ्यस्त, तोपखाना व्यवस्थित और उसकी दृष्टि चौकन्नी थी। वह उस समय अपने राज्य के सब से अधिक धन सम्पन्न इलाके के बीचों बीच ग्वालियर में बैठा था। और वह अब आखिरी बार अपनी किस्मत का फैसला करने को मैदान में उतरा था। लार्ड हेस्टिंग्स इस समय सिंधिया पर अपनी शक्ति केन्द्रित कर रहा था और वह स्वयं उसके समक्ष मोर्चे पर आया था । ग्वालियर से लगभग बीस मील दक्षिण में, छोटी सिन्धु नदी से ले कर चम्बल तक अत्यन्त ढालू पहाड़ियों की एक पंक्ति थी, जो घने जंगलों से ढकी हुई थी। उस में केवल दो मार्ग थे-जिन में गाड़ियाँ और सवार पहाड़ी को पार कर सकते थे। एक छोटी सिन्धु नदी के बराबरंसे, दूसरी चम्बल के पास से । हेस्टिग्स ने इस महत्वपूर्ण सामरिक महत्व के स्थान को कर्नल टाड के नए नक्शे की सहायता से खूब बारीकी से जाँचा । और अपनी सेना के बीच के डिवीज़न द्वारा एक ऐसी जगह घेर ली, कि जिस से छोटी सिन्धु नदी के बराबर के रास्ते से सिंधिया का आ सकना असम्भव हो गया। और दूसरे रास्ते के पीछे मेजर-जनरल डनकिन की डिवीजन को खड़ा कर दिया। दुर्भाग्य की बात थी कि महाराज सिंधिया ने सैनिक दृष्टि से इस महत्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा का कोई विचार ही नहीं किया, जो उस की राजधानी से केवल बीस मील के अन्तर पर था। ज्यों ही सिंधिया अपने शानदार तोपखाने को लेकर, जिस में सौ से ऊपर पीतल की बड़ी तोपें थीं, घाटी पर पहुंचा तो सामने अंग्रेजों की छातियाँ तनी देख सिर पीट कर रह गया। अब युद्ध का तो कोई प्रश्न ही न था । अब सिंधिया के सामने सिवा इसके कोई चारा न था कि या तो जो सन्धि-पत्र अंग्रेज उस के सामने रखें उस पर वह चुपचाप दस्तखत करदे,