पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

या अपने शानदार विशाल तोपखाने को मय सब सामान और गोला- बारूद के और अपने सब से अधिक क़ीमती इलाक़ों को अंग्रेजों के हाथ छोड़ कर अपने थोड़े से साथियों के साथ जो उसके साथ जा सकें, पग- डण्डियों के रास्ते उन पहाड़ियों के पार निकल जाय । सिंधिया ने सिर धुन लिया, और अंग्रेजों के सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए । इस सन्धि से अंग्रेजों का उस पर पूरा अधिकार हो गया । और सिंधिया ने पूरी अधीनता स्वीकार कर ली । इस प्रकार बिना ही युद्ध के मराठों का यह सब से बड़ा स्तम्भ ढह गया । बाजीराव दूसरे मराठा युद्ध के बाद बाजीराव को कम्पनी ने अपने ही हित के लिए पूना की मसनद पर बैठाया था। क्रियात्मक दृष्टि से इस समय बाजीराव अंग्रेजों का कैदी था। इस पर कम्पनी बहादुर के कर्मचारी उसकी बेड़ियों को निरन्तर कसते ही रहते थे। इस समय पूना दरबार में रिश्वतों और विश्वासघातियों का बाजार गर्म हो रहा था । बाजीराव के मन्त्रियों से लेकर घरेलू सेवकों तक सब पैसा पाकर अंग्रेजों की जासूसी कर रहे थे। अब हेस्टिग्स ने एल्फिन्स्टन को पूना दरबार का रेजीडेन्ट बना कर भेजा। उनकी शुद्ध दृष्टि बाजीराव के उर्वर प्रान्तों पर पड़ी, जिनकी आय इस समय भी डेढ़ करोड़ रुपया वार्षिक थी। एल्फिन्सटन चलता- पुरज़ा, कूट पुरुष और चालाक आदमी था ही। इस समय तक भी काठियावाड़, नवानगर, जूनागढ़ का अधिराज पेशवा बाजीराव ही था, परन्तु अंग्रेजों ने बिना ही पेशवा से पूछे इन नरेशों से युद्ध कर उनसे बड़ी-बड़ी रकमें जुर्माने में वसूल कर लीं। इसके अतिरिक्त निज़ाम और गायकवाड़ के साथ पेशवा का कुछ पुराना झगड़ा था। ये दोनों राज्य इस समय अंग्रेजों के संरक्षण में आ गए थे । और वे पेशवा की अब कुछ भी प्रान न मानते थे । गायकवाड़ की रियासत तो अंग्रेजों के हाथ का १६७