थीं। वे अंग्रेजों के विरुद्ध जोर-जोर के नारे लगा रही थीं। दूकानदार अपने आगे नंगी तलवार रख कर सौदा सुलफ़ तोल रहे थे। कारीगर एक हाथ में तलवार और एक हाथ में औजार लिए काम कर रहे थे । सब से अधिक भीड़ भाड़-शिव मन्दिर के आगे तालाब के किनारे पर थी- जिस में बड़े-बड़े कमल फूल रहे थे। नई ब्रिटिश सेना के आने से नगर में और भी उत्तेजना फैल गई थी। नवागंतुक तरुण का नाम जानहेनरी था। तीसरे पहर वह सातवी रेजीमेन्ट देशी इन्फेन्ट्री के एक सिपाही को साथ लेकर नगर घूमने निकला। दोनों घोड़ों पर सवार थे और सीधे बढ़े चले जा रहे थे । उन्हों ने देखा-अनेक क्रुद्ध दृष्टि उन पर पड़ रही हैं, और लोग उन्हें देख कर भाँति-भाँति के कटु शब्द कह रहे हैं । तरुण को अपनी भूल शीघ्र मालूम हो गई । परन्तु अब लौटने का उपाय नहीं था। वह एक लम्बा चक्कर काट कर बाहर ही बाहर अंग्रेजी छावनी में पहुंच जाना चाहता था। दोनों ने अपने घोड़े बढ़ा दिए । पर अब अन्धकार तेज़ी से फैलता जा रहा था, और शायद वे रास्ता भूल गए थे। सूरज छिप गया था । कई बार ऐसा हुआ कि कोई मराठा सवार उसे धक्का देता हुआ निकल गया। पर अभी किसी ने उस पर हमला नहीं किया था। इसी समय उसके कान में ये शब्द पड़े-“यदि साहब अपनी जानों-माल की खैर चाहता है तो चुपचाप मेरे पीछे चला आए।" तरुण ने चौकन्ना होकर देखा-एक मनुष्य मूर्ति कपड़े से अपना मुख और शरीर छिपाए तेजी से एक गली में मुड़ गई। किसी अज्ञात प्रेरणा से प्रेरित होकर तरुण ने भी अपना घोड़ा उसके पीछे मोड़ लिया। कुछ देर तक वे तेजी से आगे बढ़ते गए, पर ज्यों-ज्यों वे आगे बढ़ते गए, गली तंग और अंधेरी होती गई। तरुण ने अपने साथी को तुरन्त घोड़े रोकने और वापस लौटने की आज्ञा दी। पर इस पर वही मूर्ति फिर रुकी। और उसने कहा-“खबरदार अगर लौटे तो जान नहीं बचेगी।" इस पर साहस करके तरुण उस अज्ञात पुरुष के पीछे फिर चलने लगा। वह पुरुष पैदल था—पर वह घोड़े १७६
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१७२
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