पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१७४

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के फूल खिले हैं। और उनकी सुगन्ध से भरे हवा के झोंके मस्ती ला रहे हैं । परन्तु उस आदमी का कहीं पता न था। वह सामने के वृक्षों के झुर- मुट में जा कर गायब हो गया था। क्षण भर वह तरुण वहां खड़ा रहा- और फिर द्वार की ओर लौटा। पर यह देख कर उसका खून ठण्डा हो गया—कि वहाँ दो पुरुष हाथ में नंगी तलवारें लिए राह रोके खड़े थे। उसने पुकार कर अपने साथी सिपाही से कहा कि भाग कर अपनी जान बचाए । और फिर उन आदमियों की ओर घूम कर कहा- "मुझे यहाँ रोक रखने का तुम्हारा क्या अभिप्राय है ?" "तुम्हीं कहो, कि तुम किस इरादे से यहाँ घुस आए हो?" "यह मैं खुद नहीं जानता।" "तो तुम यह भी नहीं जानते होगे कि तुम कौन हो ?" "मैं ब्रिटिश ट्रप का एक अफ़सर हूँ।" "तब तो पक्के जासूस हो । तुम्हारा सिर अभी काटा जायगा।" "क्या मैं ने यहाँ डाका डाला है ?" "तुम श्रीमन्त पेशवा सरकार के विश्राम बाग़ महल में घुस आए हो। यह इतना बड़ा अपराध है कि तुम्हारा अभी श्रीमन्त की आज्ञा से सिर काट लिया जायगा।" बेचारा नवागन्तुक तरुण अंग्रेज़ घबरा कर आँखें फाड़-फाड़ कर उन दोनों राज पुरुषों को देखने लगा-जिन के हथियार और कीमती वस्त्र अब दूर से आते हुए प्रकाश में चमक रहे थे। उसने मन ही मन कहा- क्या यह पेशवा सरकार का महल है-जिस के संकेत पर ही दक्षिण का संग्राम और सन्धि निर्भर है । फिर वह बोला- "मुझे इस बात का पता न था", उसने सारी बात व्योरे बार कह दी। तब उन पुरुषों ने सलाह कर के कहा- "तुम्हें अभी श्रीमन्त पेशवा सरकार के रूबरू चलना पड़ेगा।" वे उसे तलवार की नोक पर उस दिशा की ओर ले गए, जिधर महलात दीख १७८