पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१७५

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रहे थे और जहाँ से तेज़ प्रकाश छन-छन कर चारों ओर बिखर रहा था। पेशवा दरबार हाल के बीचों-बीच मसनद पर बैठा था। सफ़ेद मल- मल की गद्दी और मसनद पर चिकन ज़रदोजी का निहायत नफ़ीस काम हो रहा था । गद्दी पर रंगीन विलायती साटन का चंदोवा तना था, जो सोने के खम्भों पर टंका था, चंदोवे पर चाँदी-सोने के तारों का भव्य क़सीदे का काम किया गया था। श्रीमन्त पेशवा एक महीन ढाके की मलमल की पोशाक धारण किए हुए थे । उसके मण्डील पर एक बहु- मूल्य हीरे कलगी धक् धक् शुक्र नक्षत्र की भाँति चमक रही थी। जिसका मूल्य आँखों से आंकना सम्भव न था । उसके कंठ में बड़े २ मोतियों का एक हार था, जिस के बीच में याकूत और पन्ने का वज़नी कण्ठमाल था। पेशवा अत्यन्त सुन्दर और गौरवर्ण पुरुष था। पैरों में उसने जूता नहीं पहना हुआ था । उसके पैर छोटे थे । वास्तव में वह एक अत्यन्त सुकुमार पुरुष था, जो किसी प्रकार के कष्ट सहने को नहीं बनाया गया था। पेशवा के सम्मुख तनिक हट कर पेशवा के प्रधान सेनापति मोरो- दीक्षित और बापू गोखले खड़े थे। दोनों शस्त्र सज्जित और मुस्तैद थे। तरुण को बापूजी गोखले और मोरो दीक्षित के बीच ले जाकर खड़ा कर दिया गया। जो सरदार उसे गिरफ्तार कर लाए थे, उन्होंने संक्षेप से सब हक़ीक़त बापू गोखले से कह दी। पेशवा ने मुस्कुरा कर कहा-"यह कौन आदमी है ?" "श्रीमन्त, इसे विश्राम बाग़ के भीतर पाया गया है।" "क्या इसके पास कोई संदिग्ध वस्तु भी पाई गई है ?" "नहीं श्रीमन्त।" "तो यह कहे-कि इसका इस प्रकार विश्राम बाग़ में अनधिकार प्रवेश का क्या कारण है ?" इस पर तरुण ने शुद्ध अंग्रेजी भाषा में कहा- "थोर हाईनेस, भूल से मैं आ गया हूँ। मेरा अपराध क्षमा हो।" १७६