पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१९६

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उसने सबसे आगे बढ़ कर अपने हाथ से पेशवा के महलों पर ब्रिटिश झंडा फहरा दिया। अब कायर बाजीराव ऐसे भाग रहा था जैसे हिरण शिकारी के आगे भागता है । और अंग्रेज़ उसके पीछे शिकारी की तरह भाग रहे थे, उसे लथेड़ते । बाजीराव अकेला नहीं भाग रहा था। बापू गोखले और उसकी सारी सेना भी उसके साथ ही भाग रही थी। पहले वह कर्नाटक की ओर भागा-पर आगे उसे अंग्रेजी सेनाओं द्वारा रास्ता बन्द मिला। वह लौट कर शोलापुर की ओर चला, परन्तु शोलापुर पहुंचने से प्रथम ही अंग्रेज सेनापति स्मिथ ने अष्टिगाँव में उसे जा घेरा । एक बार फिर लड़ाई हुई। पर जो मराठे खिड़की से पांव उखाड़ चुके थे-वे यहाँ क्या यश कमाते । वे शीघ्र ही भाग खड़े हुए। भागने वालों में सर्व प्रथम पेशवा था, जो पालकी में सवार हो कर भाग रहा था। उसकी स्त्रियां मर्दाना वेश धारण कर के निकल भागीं। तब तक वीर गोखले बापू अपनी घुड़ सवार सेनाओं से अंग्रेजों की राह रोकने की चेष्टा करता रहा । उसने डट कर लोहा लिया और जनरल स्थिम को युद्ध में घायल कर दिया । परन्तु इसी समय नई अंग्रेजी सेना पहुँच गई । एक बार खूब घमासान युद्ध हुआ जिसमें मराठों का अंतिम सेनानी बापू गोखले खेत रहा । उस के मरते ही मराठा सेना के जिधर सींग समाए उधर भाग निकले। अब पेशवा भागा-भागा फिर रहा था और अंग्रेज़ उसका पीछा करते-तथा देश दखल करते जाते थे । जो मराठे सह्याद्रि से अटक तक भगवा झण्डे की स्थापना का स्वप्न देखते रहे थे-वे अब पूना का छत्र- भंग होने पर टूटे नक्षत्र की भाँति बिखरते जा रहे थे। अप्रैल में सीपीनी स्थान में और एक मुठभेड़ पेशवा के सैनिकों और अंग्रेजों में हुई । पर यह युद्ध न था । युद्ध प्रारम्भ होते ही पेशवा घोड़े पर सवार होकर भाग निकला। इसके बाद मराठे भी भाग खड़े हुए। अब पेशवा की भागने की हिम्मत भी जवाब दे गई और दस मई को उसने अंग्रेजों के कम्प में अपने दूत भेज कर प्रार्थना की-कि अंग्रेज २००