पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१९५

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हुई । मराठा वीरों को हम युद्ध में खेत रहे यह सही अर्थों में नही कह सकते । क्योंकि उन में अधिकांश दलदल में जा फंसे थे, जो जीवित नहीं निकल सके। आश्चर्य की बात यह थी कि मराठों ने फिर दुबारा आक्रमण का साहस ही नहीं किया। बापू गोखले के पास अभी भी काफी सेना थी। परन्तु एलफिन्सटन की सेना का साहस और नियंत्रण ऊँचे दर्जे का था । अंग्रेज़ तोपची अत्यन्त कुशल और तेज थे। इस युद्ध की महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि किसी भी स्थान पर दस मिनिट से अधिक जम कर लड़ाई नहीं हुई। आगे बढ़ने, पीछे हटने और तोपो के गोले फेंकने ही में रात हो गई । और सूर्यास्त होते-होते उस दिन का युद्ध समाप्त हो गया। पूना का छत्र भंग खिड़की संग्राम के बाद कुछ दिन दोनों सेनाएं चुपचाप पड़ी रहीं। युद्ध की दृष्टि से यह चुप्पी अंग्रेजों के लिए लाभदायक और मराठों के लिए हानिकर थी। अंग्रेजों को इस से दूर-दूर से कुमक मंगाने का अवसर मिल गया। १६ नवम्बर को अंग्रेज सेना ने नदी पार करके पूना की ओर कदम बढ़ाया । मराठा सेना ने उनका अवरोध किया 1-पर सफलता नहीं मिली । जब वाजीराव को यह सूचना मिली तो वह अपना शिविर छोड़ कर दक्षिण की ओर भाग निकला। बापू गोखले और दूसरे सरदारों ने दूसरे प्रातः काल तक प्रतीक्षा की। परन्तु पेशवा के भाग जाने पर उन्हें पूना में रहना व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। इस लिए वह भी पूना का रण- क्षेत्र अंग्रेजों के लिए छोड़ कर पीछे हट गए । अंग्रेजों ने बिना खून-खराबी के पूना अधिकृत कर लिया। और इस समय विश्वासघाती वाला जी पन्तनाटू दोसों अंग्रेजी घुड़सवारों को लेकर पूना में प्रविष्ट हुआ । और