पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२०

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मियाँ खुरशैद मुहम्मद खाँ उर्फ बड़े मियाँ असल मुग़ल खून । मोती के समान रंग । उम्र अस्सी के पार, लम्बे पट्ट बगुला के पर जैसे सफेद । बड़ी-बड़ी आँखें, जिन में लाल डोरे, भारी भारी पपोटों के बीच से झांक कर प्यार और शान को निमन्त्रण देती हुईं। क़द लम्बा, किसी क़दर दुबले पतले, मगर कमजोर नहीं। कमर ज़रा झुकी हुई। डाढ़ी खसखासी-बहुत सावधानी से तराशी हुई। जो उनके रुपाबदार चेहरे पर बहुत भली लगती थी। आँखों पर अभी चश्मा नहीं लगा। सुर्मा लगाते थे । सिर पर मखमली ऊदी कामदार टोपी। पैरों में अलीगढ़ी पायजामा और वसली के असली कलावत्तू के काम के जूते । बदन पर पर जामदानी का अंगरखा, उस पर कमख्वाब की नीमास्तीन । हाथ में जमरुद की कीमती तस्वीह, प्रतिक्षण सरकती हुई । पान की लकीरों से पारास्ता ओठ, निरन्तर हिलते हुए । दाँतों की बत्तीसी असली कायम, जिन पर पान की लाल झलक, ठीक अनार के दानों की शोभा को मात करती हुई। यही थे मियाँ खुरशैद मुहम्मद खां, रईस बड़ागांव ! जब चलते तो हाथ में लाठी रखते थे। उनकी पानीदार आँखें इस उम्र में भी रोशन थीं। मियाँ कभी गुस्सा नहीं करते थे । शाइराना तबियत पाई थी। वे गम्भीर, चिन्तनशील, मितभाषी और खुश मिजाज थे। सभी छोटे बड़े उन्हें प्यार से मियाँ कहते थे। हक़ीक़त तो यह थी, २३