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वे आदर्श रईस थे। रईसी उन पर फ़बती थी। उनकी सखावत, दरिया- दिली, रईसी और पाक-मिजाजी की चर्चा दूर-दूर तक आस-पास के गांवों में थी। उन्हें देखते ही लोगों के सिर झुक जाते थे, और हर छोटे बड़े परिचित को देखते ही उनके हिलते हुए अोठ मुस्करा उठते थे। उनकी आज्ञा की अवहेलना नहीं की जा सकती थी। पास-पड़ोस के सभी ज़मीं- दार और रईसों में उन की इज्जत और धाक थी । सुना जाता था कि मियाँ का घराना दिल्ली के शाही खानदान से भी कुछ सम्बन्ध रखता था । बादशाह उनका आदर करते, और कभी-कभी उन्हें लाल किले में बुलाते थे । मियाँ की उम्र बादशाह सलामत की उम्र से भी अधिक थी। इसी से बादशाह कभी-कभी दर्बारे तख्लिए और कभी-कभी शाही दस्तर- खान पर भी मियाँ को बुलाकर उनकी प्रतिष्ठा बढ़ाते थे। इसी से रईस- रियाया सभी पर उनका दबदबा था । घुड़सवारी के शौकीन थे। सुबह २४