पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मूलाधार धनागार वहाँ सम्पन्न नहीं हो सकता था। इसी से शिवाजी आदि छापे मार कर पड़ोसी राज्यों से धन अपहरण करते तथा पेशवा चौथ वसूल करते थे । लूट-सरदेशमुखी और चौथ का असल कारण ही यह था कि मराठा शक्ति का आर्थिक ढाँचा उन्हीं पर चल रहा था । अब अंग्रेज़ी सत्ता के प्रताप से यह सब असम्भव हो गया। अब लूट-मार, सरदेशमुखी, चौथ वसूल करने का स्रोत सूख गया। उधर बड़ी २ सेनाओं को रखने, उन्हें सुशिक्षित करने, उन्हें उत्तम शस्त्रास्त्रों के सज्जित करने के लिए जितने धन की आवश्यकता थी, उतना धन पेशवा के पास न था, न वैसी आय का साधन ही था। इसी से पेशवा के पाँव डगमगा गए, और अब अन्तिम नाममात्र के धक्के से वह ढह गया । शक्ति-सन्तुलन के बीस बरस सन् १८१३ में जो चार्टर एक्ट ब्रिटिश पार्लमेंट ने भारत के अन्दर ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारों को कायम रखने के लिए पास किया था, उसके द्वारा भारत के प्राचीन व्यापार और उद्योगों को किस तरह तहस-नहस कर डाला गया, इसका यत्किचित् उल्लेख हमने पिछले किसी परिच्छेद में किया है। उसके बाद सन् ३३ में जबकि लार्ड विलियम बैंटिक का शासन चक्र घूम रहा था, पास किया गया। इन बीस वर्षों के बीच में जो परिवर्तन भारत और इंग्लिस्तान में हुए, वे ऐसे महत्त्वपूर्ण थे, जिनका आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रभाव समूचे विश्व पर पड़ा। इन बीस वर्षों में खास तौर पर ग्रेट ब्रिटेन विश्व का आर्थिक स्वामी और संसार के सबसे बड़े भारी साम्राज्य का प्रतीक बन गया। और भारत ने अपनी शताब्दियों से संचित सम्पदा, राज्य और उद्योग तथा संस्कारों और उसके सांस्कृतिक प्रभावों को खो दिया । भारतीय साम्राज्य, भारत की लूट और भारत के उद्योग धन्धों के नाश की प्रतिक्रिया स्वरूप २०५