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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२०४

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नवाब नक़द इनाम दिया था । सौभाग्य से हेस्टिग्स को स्टुअर्ट एलफिन्स्टन जैसे कूटनीतिज्ञ और इतिहास मर्मज्ञ, सर चार्ल्स मैटकाफ जैसे राजनीति और व्यवस्था-शास्त्र के आचार्य, सर जानमालकम और सर टामस मनरो जैसे योग्य सहायक मिले थे। जिन की सहायता से हेस्टिग्स ने बंगाल-मद्रास और दिल्ली में अपना शासन और दवदवा कायम कर लिया था। पूना का छत्र-भंग होते ही पिण्डारी अपने आप ही तितर-बितर हो गए। कुछ घेर कर मार डाले गए। अमीर खाँ को अंग्रेजों ने टोंक का ना दिया। अमीर खाँ ने भी अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली। चीतू जंगल में मारा गया, जहाँ उसे कोई बाघ खा गया। शेष पिण्डारी-जहाँ जिसे जगह मिली चुपचाप बस गए और शान्त शिष्ट कृषक बन गए। इस प्रकार शक्ति का सन्तुलन करके प्रत्यक्ष रूप में अंग्रेज़ शान्ति की चोटी पर ब्रिटिश झण्डा फहरा कर अपनी विजय पर गर्व कर रहे थे, परन्तु अभी कम्पनी के राज्य की भीतरी दशा अत्यन्त शोचनीय थी। भारतवासियों की उस समय की नैतिक निर्बलता और अंग्रेजों की धूर्तता मिश्रित संगठन शक्ति के परस्पर सम्पर्क से जो परि- स्थिति उत्पन्न हो गई थी, वह इतनी अस्वाभाविक थी कि उस पर कुछ भी भरोसा नहीं किया जा सकता था। अंग्रेजों की संख्या भारत में बहुत कम थी। उसकी पूर्ति अंग्रेज़ पड़ोसियों की उस मैत्री भावना से पूरा कर सकते थे, जो उनकी न्याय बुद्धि और नर्म व्यवहार से प्राप्त होती। परन्तु वह मैत्री भावना भारत में अंग्रेजों के प्रति कहीं थी ही नहीं । युद्धों में चाहे भी जिस तरह उन्होंने सफलताएँ प्राप्त की थीं परन्तु पराजित लोगों के दिल शत्रुता से भरे हुए थे । और षड्यन्त्र और विरोध का वातावरण उनके विरुद्ध चाहे जब उठ खड़ा हो सकता था। परन्तु अंग्रेजों को इसकी परवाह न थी। वे अपनी शक्ति का सन्तुलन करते जा रहे थे, भूत-भविष्य की ओर उनकी दृष्टि न थी। पूना का छत्र भंग करके-रणजीतसिंह और काबुल से साठ-गांठ करके, दिल्ली के तख्त की जड़ें खोखली करके, नेपाल को दूर धकेल कर अब उन्होंने , २०८