पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२०

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" "ज़मीर, देखा तूने उस गुलरू को।" ज़मीर ने दबी ज़बान से कहा-"खुदाबन्द, हुक्म हो तो पता लगाऊँ।" “जा डोली वाले कहारों से पूँछ ।' ज़मीर ने एक चमचमाती अशर्फी कहार की हथेली पर रख दी। कहार आँखें फाड़-फाड़ कर ज़मीर के मुंह की ओर देखने लगा। उसने कहा-"हुजूर क्या चाहते हैं।" "खामोश," ज़मीर ने होठों पर उंगली रख कर कहा-"यह कहो, सवारियाँ कहाँ से लाए हो।" कहार ने झुक कर ज़मीर के कान में कुछ कहा। ज़मीर सिर हिलाता हुअा लौट कर अपने स्वामी के पास आया। उसने हाथ बाँध कर कहा -"सब मालूम हो गया हुजूर ।" "उसे हासिल करना होगा। "जो हुक्म खुदावन्द ।” "चाहे भी जिस कीमत पर।" "जो हुक्म ।" दोनों भीड़ में मिल गए । डोली आँखों से ओझल हो गई। उसी रात को दोनों आदमी एक अंधेरा गली में खड़े थे। सर्दी कड़ाकेकी थी और रात अंधेरी थी। गली में सन्नाटा था। ज़मीर ने कहा--"पालीजाह, कोठा तो यही है।" "लेकिन खवरदार, मेरा नाम ज़ाहिर न हो।" दोनों ऊपर चढ़ गए। वेश्या का कोठा था । वही अधेड़ औरत रज़ाई लपेटे बैठी छालियां कतर रही थी। नवागन्तुकों को उसने अपनी सांप को सी आँखों से घूर कर देखा । एक ने आँख ही आँख में संकेत किया। वृद्धा गम्भीर हो गई। दूसरे आगन्तुक ने कहा- "बडी बी, सलाम ।" २२४