पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२१

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बुढ़िया ने खड़ी हो कर अदब से उस पुरुष को मसनद पर बैठाया । इत्र और पान पेश किया । आगन्तुक ने कहा-"बड़ी बी, हम लोगों के आने से आप को कुछ तरवुद तो नहीं हुआ।" "नहीं मेरे सरकार, यह तो आप ही की लौंडी का घर है। प्राराम से तशरीफ रखिए। और कहिए, बन्दी आपकी क्या खिदमत बजा लाए।" इसी बीच दूसरे व्यक्ति ने कहा-"बड़ी बी, हुक्म हो तो जीने की कुण्डी बन्द कर दूं।" और उसने वृद्धा का संकेत पा कर द्वार बन्द कर दिया ! अब वापस वृद्धा के निकट बैठ कर उसने कहा-"बड़ी बी, हमारे सरकार तुम्हारी लड़की पर जी-जान से फ़िदा हैं। अगर तुम नाराज न हो तो इस बावत कुछ बात करूं।" नायिका ने तन्त की बात उठती देख कर ज़रा तुनुक मिजाजी से कहा-“यह तो सरकार की इनायत है, मगर आप जानते हैं, ये गंडेरियां नहीं हैं, कि चार पैसे की खरीदी और चूस लीं।" वह व्यक्ति भी पूरा घाघ था । उसने कहा-डेरियों की बात क्या है बड़ी बी, हर चीज़ के दाम हैं । और हर एक आदमी के बात करने का ढंग जुदा है। अगर तुम्हें नागवार गुज़रा हो तो हम लोग चले जाय ।" बुढ़िया नर्म पड़ गई । उसने ज़रा दब कर कहा-'आप इतने ही में नाराज हो गए, मैंने यही तो कहा था कि सरकार को हम जानते नहीं हैं । कौन हैं, क्या रुतबा है । सारा शहर जानता है यह ठिकाने का घराना है । मैं कुछ ऐसी रज़ील नहीं हूँ, आप के तुफैल से बड़े-बड़े रईसों-नवाबों और रईसज़ादों ने बन्दी की जूतियाँ सीधी की हैं।" उस आदमी ने कड़े हो कर कहा- "खैर, तो तुम्हारा जवाब क्या है ?" "बन्दी को क्या उज्र है । पर यह भी तो मालूम हो कि हुजूरे प्राली का इरादा क्या है।" "वे चाहते हैं, कि तुम्हारी लड़की को बेगम बनाएं, वह खूब आराम से रहेगी। सरकार एक आला रईस हैं।" २२५