पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२३

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नवाब कुदसिया बेगम बादशाह ने उसका नाम रखा कुदसिया बेगम । उसे नवाब का खिताब दिया, जो किसी दूसरी वेगम को प्राप्त न था। और उसे ताज पहनने का भी अधिकार दे दिया। अपने सौन्दर्य, प्रतिभा और खुशअखलाक के कारण वह उस विशाल महल-सरा में सब बेगमों की सरताज बन गई । नसीरुद्दीन हैदर उसके गुलाम बने हुए थे। सम्पत्ति उसकी ठोकरों में थी। वह खुले हाथों खर्च करती थी। रुपए-अशर्फियाँ उसके लिए कंकड़-पत्थरों का ढेर थीं। उसका केवल पानों का खर्च रोज़ाना आठ सौ रुपया था । सेरों मोती चूने के लिए रोज पीसे जाते थे। रोज सौ रुपयों के फूलों के हार उसके लिए मोल लिए जाते थे। सात सौ रुपए माहवार उसकी चूड़ियों का खर्च था, जो उसकी दासियाँ पहनती थीं। उसके बावर्चीखाने में छह सौ रुपया रोज़ खर्च होता था। सोने के थाल में सब प्रकार के रत्नों का सतनजा प्रति संध्या को अपने सिरहाने रख कर सोती थी। और प्रातःकाल होते ही वह ग़रीबों को खैरात कर दिया जाता था। उसकी पोशाक के लिए हज़ार रुपए रोज़ खर्च किए जाते थे, जिसे वह सिर्फ एक बार पहन कर शैदानियों को दे देती थी। गर्मियों में जो खस की टट्टियाँ उसके लिए लगाई जाती थीं, वह केवड़ा और गुलाव से छिड़की जाती थीं। सर्दियों में ऊनी कपड़ों के गठे के गट्टे उसके अमलों में बाँटे जाते थे। दस-दस हज़ार रुपयों की लागत की उसकी रज़ाइयाँ बनती थीं। और एक बार ओढ़ लेने के बाद जिसके भाग्य में होती थीं, उसे बख्श दी जाती थीं। वह एक-एक लाख रुपए जल्सेवालियों को दे डालती थी। उसे नवाब का खिताब दिया गया था और वह रत्न जटित ताज सिर पर पहनती थी। वसन्त की ऋतु थी। बेगम महल में हर कोई वसन्ती बाना पहने था। बादशाह का खास बाग़ सजाया गया था। मैदान में अपने-अपने २२७