पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२२

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बुढ़िया ने तपाक से कहा--"क्यों नहीं । बड़े बड़े रईस यहाँ आए और यही सवाल किया। मगर मैंने अभी मंजूर नहीं किया । क्योंकि मेरा बे-अन्दाज़ रुपया इसकी तालीम और परवरिश में खर्च हुअा है।" अब अधीर हो कर दूसरे पुरुष ने मुँह खोला । उन्होंने कहा--"अाखिर कितना, कुछ कहोगी भी।" वेश्या ने चुन्धी आँखें उस प्रभावशाली पुरुष के मुख पर डाल कर कहा--प्रालीजाह, पचास हजार रुपया तो मेरा उसकी तालीम और परवरिश पर खर्च हो चुका है।" दूसरे व्यक्ति ने कहा--"बड़ी बी, इतना अन्धेर क्यों करती हो।" परन्तु बड़ी बी को बीच ही में जबाब देने से रोक कर प्रथम पुरुष ने कहा--"सौदे की ज़रूरत नहीं, यह लो।" उसने अपने वस्त्रों में छिपी हुई एक माला गले से उतार कर बुढ़िया के ऊपर फेंक दी। वह उठ खड़ा हुा । और बोला-"ज़मीर, उस परी पैकर को अपने हमराह ले आयो।" वह चल दिया । बुढ़िया ने आश्चर्य चकित होकर माला उठा ली। वह आँखें फाड़-फाड़ कर उसके अंगूर के बराबर बड़े-बड़े मोतियों को मोमबत्ती के धुंधले प्रकाश में देखने लगी। ज़मीर ने कहा--"देखती क्या हो, दो लाख का माल है । अब तो पांचों घी में और सिर कढ़ाई में। लखनऊ के बादशाह नसीरुद्दीन हैदर हैं । सफाई से चंडूल को फांस लाया हूँ। अब इस में से पचास हज़ार बन्दे को इनायत करो।" बूढ़ी ने माला को चोली में छिपा लिया। वह आनन्द से विह्वल हो कर बेटी-बेटी, पुकारने लगी। लड़की के आते ही वह उस के गले लिपट गई । उसने कहा-"मेरी बेटी, मलिका, अब तेरा इस बुढ़िया से बिछुड़ने का समय आ गया । जा ग़रीब माँ को भूल न जाना ।” दोनों गले मिल कर रोईं । सलाह मश्विरे किए । पट्टियां पढ़ाई गईं। ज़मीर उसे डोली में बैठा कर वहां से चल दिया। २२६