पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२५

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निहाल कर दिया, कि अब मैं दुनिया को आनन-फानन में निहाल कर सकती हूँ।" बादशाह ने उसका मधुर चुम्बन लिया। एक आह भरी और कहा- "प्यारी बेगम, तुम से मुझे जो राहत मिली है, उसके सामने यह बाद- शाहत भी हेच है। लामो, अपने हाथ से एक प्याला दो। अपने होठों से छू कर, उसमें अमृत डाल कर ।" वेगम ने हँस कर दो प्याले शराब से लबालब भरे और बादशाह को दिए । बादशाह उन्हें पी कर बेगम की गोद में झुक कर दीनो-दुनिया को भूल गए। क़ासिम अलीशाह कलन्दर गोमती के उस पार एक बड़ा मैदान है । इस मैदान में खेती नहीं होती, न कोई बस्ती ही नजदीक है। यह मैदान चराई के लिए छोड़ दिया गया है। कुछ फ़ासले पर कंजरों की बस्ती थी। मैदान के बीचो- बीच एक टेकरी थी। टेकरी पर कच्ची दीवार का अहाता बनाकर शहन- शाह कासिम अलीशाह कलंदर रहते थे । तकिये में एक नीम का पुराना पेड़ था जिस पर कुछ फूल-पौदे लगा लिए गए थे। एक चबूतरा था, जिसके एक कोने में एक मृगछाला पर क़ासिम अलीशाह क़लंदर बैठते थे। दो चार चटाइयाँ वहाँ पड़ी रहती थीं, उन पर आने जाने वाले विश्वासी जन और शागिर्द लोग बैठते थे । शाह क़ासिम अली का रंग एकदम स्याह आबनूस के समान था। दाढ़ी उनकी घनी काली थी-अभी उनकी उम्र चालीस के भीतर ही थी, एकाध बाल पक गया था। बहुत अधिक पान खाने से उनके दाँत और ओंठ काले पड़ गए थे। उनके हाथ में हज़ार दानों की जैतून की माला हर वक्त रहती थी। हर वक्त उनके ओंठ फड़कते और माला सरकती रहती थी। हाथ के नीचे लकड़ी का एक तकिया रहता < २२६