पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२२६

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था। उनकी सूरत डरावनी थी । ओंठ मोटे थे । मुख से तम्बाकू की तेज बू आती तथा बोलते तो थूक की बौछार पड़ती थी। बीच-बीच अनलहक़ के नारे लगाते थे। बहुधा ध्यानस्थ बैठे रहते थे। कभी किसी ने उन्हें खाते-पीते नहीं देखा था। गर्जमंद दुनियादार वाले उनके सामने चटाई पर अदब से बैठे रहते । शाह साहेब वज़ीफा पढ़ते रहते, जब कभी गर्जमंदों की तरफ मुतवज्जह होते, तब वे हाथ बाँध कर उनका हुक्म सुनते थे। मशहूर था कि शाहे-जिन आपके दोस्त हैं। और उनकी बदौलत वे बड़ी-बड़ी करामात दुनिया को दिखा सकते हैं। यह भी प्रसिद्ध था- कि नवाब कुदसिया बेगम को लड़का उन्हीं की बदौलत हुआ था। तकिए में दो आदमी बैठे धीरे-धीरे बातें कर रहे थे—एक ने कहा- "इन्हीं की दया से बादशाह की मुरादें बर आईं।" "फिर भी किस क़दर सादगी और सफाई से रहते हैं।" "खुदा परस्त बेलौस फ़कीर हैं।" "आदमी पहुँचे हुए मालूम देते हैं।" "इसमें क्या शक है, एकदम बेलौस, निर्लोभ ।" "किसी से कौड़ी नहीं लेते।" "लंगोटे के भी सच्चे मालूम देते हैं।" "बारह वर्ष तो यहीं बैठे हो गए। शहर के हिंदू-मुसलमान सभी आकर जियारत करते हैं । सुबह दरबार लगता है। कितनी वेग्रौलाद औरतों को इनके हुक्म से बेटा हुआ है । कभी किसी से पैसा नहीं लेते । ( धीरे से ) कीमिया बनाते हैं।" "अच्छा, यह भेद तो अब खुला।" "अमा, छुप कर गरीबों को सोना बाँटते हैं । आधी रात को दरिया में नहा कर खुदा की इबादत में बैठते हैं। सो सुबह तक बैठे रहते हैं।" "भूत प्रेत जिन सब काबू में हैं।" २३०