पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२३७

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"मुंह झोंस दूं उस मुए चोर्ट का । जिसे उसकी असलियत न मालूम हो उसे कहो । मैं तो उसकी सात पुश्तों को जानती हूँ।" "लेकिन लखनऊ में उसके बहुत मौतकिद है। सबकी मुरादें वह पूरी करता है।" "खाक पत्थर करता है। कोई उनसे यह नहीं कहता कि यह मुआ उठाईगीर है।" "तोबा कहो बी इमामन। वह अब जब शाही महल में आता है तो मुल्के जमानिया उसके जूते सीधे करते हैं। और नई बेगम खड़ी होकर आदाव बजाती हैं।" "खूब, तो तुम अब यही खबरें बेचने का धंधा करते हो ? जड़ी एक- एक की दो-दो, इन फिरंगियों से और वसूलो रुपये मुट्ठी भर कर । पर इन मुए बन्दरमुँहों को पराए फटे में पैर डालने से क्या मिलता है। शाही महल में कहाँ क्या होता है, इससे उन्हें क्या लेना-देना है ?" "हमें इससे क्या, सिर्फ इधर की खबर उधर देने से हमारी मुट्ठी गर्म हो तो हमारा क्या बिगड़ता है, अपना-अपना शौक ही तो है। जरी तुम भी बेगम महल के हालचाल देती रहो।" "तो आधी रकम मैं लूंगी।" "सब तुम्हारा ही है बीबी जान, इस क़दर खुदगर्ज न बनो।" "खैर अब सो रहो खैर सल्ला से । अच्छा सीग्रा निकाला तुमने आमदनी का । मगर ज़रा हाथ पैर बचा कर काम करना।" बेफिक्र रहो । मैं कच्ची गोली नहीं खेलने का।" इसके बाद दोनों दोस्त इत्मीनान से एक ही चारपाई पर सो रहे।

२७:

शाह अब्बास की दरगाह में प्रत्येक मास के हर प्रथम जुमे को बादशाह-बेगम हजरत शाह २४२