पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२३९

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न दरगाह में मानता मानने से होती हैं, न दान पुण्य से, न रोज़ा-नमाज से। उसका भावारा-गर्द पति-जो अपने को बादशाह कहता था-- आवारा स्त्री पुरुषों में गन्दी जिन्दगी व्यतीत कर रहा था। और बेचारी बेगम इस प्रकार पुत्र की भीख मांगती फिर रही थी। प्रजा भूखी-नंगी- बेबस पीड़ित थी। महल में रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा था। और सारी रियाया लूट--अकाल--बदइन्तजामी और अन्धेरगर्दी के फन्दे में फंसी थी। ऐसे ही दिन लखनऊ में बीत रहे थे।

२८ :

इशरत-मंजिल का जश्न इशरत-मंजिल में बड़ी बहार थी। बादशाह की चहेती बेगम नवाब कुदसिया बेगम ने पुत्र-रत्न को जन्म दिया था। बादशाह नसीरुद्दीन हैदर अपने अंग्रेज़ मुसाहिबों के साथ अंग्रेजी लिबास पहने विलायती शराब के प्याले पर प्याले उड़ा रहे थे। इस वक्त लखनऊ में हिन्दुस्तान भर की तवायफे, भाँड, नक्काल, गवैये तथा कलावन्त इकट्ठे हो गए थे। वे सब बादशाह को अपने करतब दिखा कर उन्हें प्रसन्न करना चाहते थे । पर बादशाह की बोलती उस काने हज्जाम के हाथ थी। खाने का वक्त हो गया था । खवास और बावर्ची शाही दस्तरखान चुन रहे थे, जिस पर ये लफंगे अंग्रेज़ बढ़-बढ़ कर हाथ साफ़ करने वाले थे। भाँति-भाँति के देशी और विलायती पकवान और भुने माँस परसे जा रहे थे, जिनकी सुगन्ध से कमरा महक रहा था । फ्रान्सीसी बावर्ची ने धीरे से हज्जाम के कान में कहा कि शाही दस्तरखान तैयार है। हज्जाम ने ज़मीन तक झुक कर बादशाह से कहा-'योर मेजेस्टी, खाना आपकी इन्तज़ार कर रहा है।" बादशाह खिलखिला कर हँस पड़े। उन्होंने कहा-"क्या खूब, खूब २४३