पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२४०

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जैसा मज़हर फिकरा निकाला। खाना हमारी इन्तज़ार कर रहा है। जैसे कि हम उसकी इन्तज़ारी कर रहे थे।" बादशाह जा कर अपने मुसाहिबों के साथ दस्तरखान पर जा बैठे। बादशाह ने सुगन्धित पुलाव पर हाथ बढ़ाते हुए कहा-"हाँ मिस्टर विलियम, तुम्हारे यहाँ क्या पुलाव इसी क़िस्म का बनता है ? मेरा यह फ्रान्सीसी खानसामा तो इसे वैसा अच्छा नहीं बना सकता, अली बनाता है, क्यों मि० सफदरजंग ?" बादशाह दर्जी को मज़ाक में सफदरजंग कहते थे । उसने कुर्सी पर खड़े हो कर और अदब से झुक कर कहा-“यस, योर मेजेस्टी आप सही फर्मा रहे हैं । इस समय नाई ने बात काट कर कहा-“मगर नहीं, खुदा की क़सम, अगर मजहर अली जैसा बेवकूफ खानसामा इंगलैण्ड में पहुंच जाय तो वहाँ इसे खड़ा-खड़ा निकाल दिया जाय ।" "सच ? यह क्यों ? क्या वह दुनिया में सबसे ज्यादा बेहतर पुलाव बनाना नहीं जानता ?" बादशाह ने एक निवाला मुंह में डालते हुए कहा। "यह मैं नहीं कहता योर मेजेस्टी, लेकिन वहाँ एक से बढ़ कर एक खानसामा है।" बादशाह की त्योरियों में बल पड़ गए । वे नाखुश हो कर खाना खाने लगे । इसी समय बादशाह के चचा मुर्तिज़ाबेग़ पा कर बादशाह से कोई बीस क़दम के फ़ासले पर खड़े हो कर प्रादाब बजाने लगे। नवाब मुर्तिज़ाबेग़ बूढ़े आदमी थे। उनकी उम्र अस्सी को पार कर गई थी। इनकी गोल गुच्छेदार डाढ़ी, छोटी-छोटी आँखें, झुकी हुई कमर, बदन पर आवेरखाँ का अंगरखा, ढीला लखनवी पायजामा । बूढ़े नवाब की गर्दन रह-रह कर हिल रही थी। उसे खड़े-खड़े कोर्निश करते देख हज्जाम ने कहा-"योर मेजेस्टी, देखिए यह बूढ़ा खूसट किस तरह गर्दन हिला-हिला कर हुजूर वाला की तौहीन कर रहा है।"