पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२४

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. मालगुजारी भरनी है, उसका वारंट लेकर कम्पनी का आदमी दरवाज़े पर डटा बैठा है । अमज़द पिछवाड़े की दीवार फांदकर आया है । कहता है- घर रोना पीटना मचा है। कम्पनी के प्यादे बरकन्दाज़ एक हो बदजात होते हैं । बहू बेटियों की, बेहुर्मती करना तो उनका बायें हाथ का खेल है ।" "बहुत खराब बात है। कितने रुपये चाहिएँ उसे।" "चार सौ मांगता है।" "और वासुदेव महाराज ।" "उनकी लड़की की शादी है । कहते हैं, जहर खाने को भी पैसा नहीं है। बिरादरी में नाक कट गई तो जान दे देगा।" "म्याँ गैरतमन्द आदमी है । उसे कितना रुपया चाहिए।" "वह छह सौ मांगता है।" "इस वक्त तहवील में तुम्हारे पास कितना रुपया है ?" "वही एक हजार है, जो चौधरियों के यहाँ से क़र्ज़ आया है।" "तब तो दोनों का काम हो जाएगा । दे दो।" "मगर अब्बा हुजूर, वह तो हम ने सरकारी लगान अदा करने के लिए क़र्ज लिया है।" "उस पाक परवरदिगार की इनायत से हमें कर्जा अभी मिलता है, दे दो, ये गर्जमन्द हैं। पीछे देखा जायगा।" लेकिन छोटे मियाँ को बड़े मियाँ की यह उदारता अच्छी नहीं लगी। वे चुपचाप खड़े रहे। बड़े मियाँ ने नर्मी से कहा--"कोई सख्त कलाम न कहना बेटे ; ये गरीब गर्जमन्द हैं, हमारी परजा हैं. सुख-दुःख में हमारा ही तो आसरा तकते हैं। यह भी तो देखो।" "लेकिन हुजूर, हम मालगुजारी कहाँ से अदा करेंगे । ये फ़िरंगी के प्यादे और अमीन तो बादशाह तक की छीछालेदर करने में दरेग़ नहीं करते हैं। कल ही वे आ धमकेंगे ड्योढ़ियों पर, और हुजूर की शान में बेअदबी करेंगे तो मैं उन्हें गोली से उड़ा दूंगा । पीछे चाहे जो कुछ हो।" "लेकिन ऐसा होगा क्यों, मालगुजारी दे दी जायगी।" २७