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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२५

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। यह तो । "कहाँ से दे दी जायगी ?" "चौधरी तो हमारे दोस्त हैं। वे क्या कभी नाहीं कर सकते हैं। वे भी खानदानी ज़मींदार हैं । इज्ज़तदार की इज्जत बचाना वे जानते हैं।" "तो यह भी खूब रही। क़र्जा लिए जाइए, और दूसरों की बांटे जाइए। ये ही क्यों नहीं जाते. चौधरी के पास ?" "बेटा, वे गरीब आदमी हैं, मगर इज्जतदार तो हैं। फिर, गाँव की इज्जत का सवाल है। हमारे गाँव का आसामी गैर के सामने हाथ पसारेगा तो हमारी भी इज्जत कहाँ रही।" "लेकिन हुजूर, सारी रियासत तो रहन हो गई । जब कर्जा भी न मिलेगा तब क्या होगा।" "जो खुदा को मंजूर होगा। जाओ, दे दो बेटे, बहुत देर से बैठे हैं वे । न जाने उनके घर पर क्या बीत रही होगी। पाजी बरकंदाज़ बड़े बद- तमीज़ होते हैं।" छोटे मियाँ आहिस्ता से चले गए। मियाँ ने आराम से मसनद का... सहारा ले कर पूरी तस्बीह पर उँगलियाँ फेरी । इतने ही में खादिम महमूद और लतीफ़ छिद् काछी को धकेलते हुए दीवानखाने में घुस आए। छिदू मियाँ के सामने पहुंचते ही ज़मीन में ओंधा लेट गया। मियाँ ने हैरत में आ कर कहा-"क्या हुआ, क्या हुआ ?" "हुजूर इस ने रात-भर में प्राधा खेत साफ कर दिया। दो गट्ठर बाँधे हैं। न जाने कब से चोरी करता था। हाथ ही नहीं लगता था। आज रंगे हाथों पकड़ा गया है।" मियाँ ने छिद्दू की ओर देख कर आहिस्ता से कहा- "क्या तूने खेतों में नुकसान किया ?" "हुजूर, ग़लती हो गई । कान पकड़ता हूँ माई-बाप ।" "जा भाग, अब ऐसा न करना।" छिदू मियाँ को लम्बी-लम्बी सलामें झुकाते हुए चला गया । दोनों खिदमतगार इस तरह शिकार को हाथ से बाहर जाते देख २८