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परन्तु नसीरुउद्दीन क्रोध से लाल हो रहे थे। क्रोध और शराब ने उनकी बुद्धि पर परदा डाल दिया था। उन्होंने बेगम और बच्चे की तरफ आँख उठा. कर भी नहीं देखा । वेबारीक नज़रों से इधर उधर देखते पर्दो मसनदों, मसहरियों को उलट- पुलट करने लगे। बेगम का मुंह सूख गया। अपमान का घूट पी कर उसने अपने होंठ काट कर कहा-"जहाँ- पनाह, यहाँ किसे ढूंढ रहे हैं । और इस बे-वक्त हुजूर के बिना इत्तला पाने की वजह क्या है।" "मैं तुम्हारे यार को ढूंढ रहा हूँ, जिसे तुम महल में बुलाती और मेरी आँखों में धूल झोंकती रही हो । इसके अलावा मुझे अपने ही महल में आने के लिए किसी के हुक्म की जरूरत नहीं है। बेगम ने जवाब नहीं दिया। कलेजा थाम कर वह भीतर चली गई। बादशाह देख भाल कर उल्टे पैर लौट आए। अपनी आरामगाह में आकर वे चुपचाप बैठ गए । उनके अंग्रेज मुसाहिब और हज्जाम इस बक्त) २४०