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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२४३

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कहा-"अभी चल ।" एकान्त में पहुंच कर धूर्त हज्जाम ने कहा, “योर मैजेस्टी, रहम, रहम ।" "लेकिन वह बात कह ।" "योर मैजेस्टी, खवास को कई बार बेगम महल में किसी मर्द के आने का खटका हुआ है । इस वक्त भी वह कुछ ऐसा ही इशारा कर रही थी। वह प्रालीजाह से अर्ज करना चाहती थी पर मैंने कहा--"जब तक हिज- मैजेस्टी खाना खा रहे हैं, वह चुप रहे ।" "उफ़ फाइशा।" बादशाह आग बबूला हो गए। फिर बोले--“याद . रखना खान, अगर झूठ बात साबित हुई तो तुझे और उस औरत को जमीन में गड़वा कर कुत्तों से नुचवा डालंगा।" नाई ने सिर झुका लिया। उसने कहा--'योर मैजेस्टी यह खादिम हुजूर का जांनिसार गुलाम है।" बादशाह का अंग-प्रत्यंग कांप रहा था। वह बड़े-बड़े डग भरते हुए बेगम महल की ओर चल दिए ।

२६

हीरे की कनी कुदसिया बेगम एक महीन ओढ़नी ओढ़े मसनद पर लुढ़की पड़ी थी । कोई बांदी उसका दिल बहलाने को दिलरुवा के तार छेड़ रही थी। अभी उसके चेहरे पर पीलापन छाया हुआ था-प्रसव की दुर्बलता से वह अभी मुर्भाई कली के समान हो रही थी । उसका नन्हा सा बालक सुनहरी पालने में पड़ा अंगूठा चूस रहा था। कुदसिया बेगम देख रही थी-उस की आँखें हंस रही थीं-आज उसके बराबर भाग्यवती स्त्री कौन थी। एकाएक महल में हड़बड़ी मच गई। बादशाह बिना इत्तलाह गैरदस्तूर महल में धंसे चले आए। बाँदियाँ-मुग़लानिया पासवानें हड़-बड़ा कर भाग खड़ी हुईं । बेगम ने खड़े हो कर हंस कर बादशाह की कोनिस की । २४७