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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२५०

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तलब किया और तत्काल ही वहाँ से कूच बोल दिया। अपनी-अपनी सवारियों पर बैठ कर बाँदियाँ, बेगमें, रखेलियाँ, दासियाँ लखनऊ को लौट चलीं। बादशाह हाथी पर बैठ कर चले । शिकार का मजा किरकिरा हो गया। शाही मेहमान लखनऊ में धूम मच गई। घर-घर चर्चा होने लगा कि नए हुजूर गवर्नर-जनरल बहादुर अवध के बादशाह को सलामी देने लखनऊ तशरीफ़ ला रहे हैं । हजारों श्रादमी घाट-बगीचे, महलात-सड़कें सजाने और सफाई के काम पर रात-दिन लग रहे थे । फ़रीद बख्शमहल, शाहे- नजफ़ का इमामवाड़ा, मोती महल, खास तौर पर सजाए जा रहे थे- तथा वहाँ रोशनी का इन्तज़ाम बड़े ठाठ का हो रहा था । हजारों फ़ानूस और लाखों काफरी मोमबत्तियाँ-दीवारों और कंगूरों पर लगाई जा रही थीं । बादशाहे-अवध ने अपने शाही मेहमान की तवाजा के लिए तीस लाख रुपया खर्च करने की मंजूरी दी थी। नायब दीवान साहब को शहर सजाने का भार दिया गया था। उनके सलाहकार तीन अंग्रेज़ इंजीनियर थे। राजभवन की सजावट तथा शाही दस्तरखान का सारा भार बादशाह के अंग्रेज़ हज्जाम और मुंह लगे मुसाहिब सरफराज़ खाँ को दिया गया था। हुजूर गवर्नर-जनरल बहादुर के लिए खाने-पीने की उम्दा चीजें और तरह-तरह की शराबें मंगाने की फिहरिस्त सर- फराज खाँ ने तैयार की थी। बादशाह अपने अंग्रेज़ मुसाहिबों के साथ छोटी हाजरी खा कर अपने खास कमरे में बैठे मजे में क्लेरेट पी रहे थे। चारों अंग्रेज़ मुसाहिब शाही टेबल पर खाया हुआ गरिष्ट भोजन पचाने घोड़ों पर सवार हो हवा खाने चले गए थे। सुबह का मनोरम समय था। फूलों की महक लिए ठण्डी २५४