पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३३:

दो राजपुरुष हकीय महदी अली खाँ ने अवध की सल्तनत का इन्तजाम अपने हाथ में लिया। सब से पहला काम गवर्नर-जनरल महोदय के स्वागत खर्च के तीस लाख रुपये जुटाने का था, फिर बादशाह के व्यक्तिगत और भी खर्च । बादशाह ने एक नई औरत को रखेली बना कर रखा था। यह एक नाचने वाली औरत थी। उसका भाई एक सितारिया था, जो अब एक उमराव का पद पा चुका था। और अब उसका नाम अमीरुद्दौला था। बादशाह ने उसे चौबीस हजार रुपये साल की जागीर दे दी थी । उधर सरफराजखाँ का भी खर्चा अस्सी-नब्बे हजार प्रति मास था। इसके अतिरिक्त और भी अखराजात थे। इसलिए महदी अली ने सब चकलादारों को यह सख्त ताकीद कर दी कि यदि चैत्र की तीस तारीख तक तमाम लगान और भूमि-कर न अदा कर लिया गया तो सब को नौकरी से बर्खास्त कर जेन में डाल दिया जायगा। इसलिए चकलादार लोगों के घरों में घुस-घुस कर एक-एक गाँव की सफाई करने लगे। जमींदार और प्रजा में कोई भेद न रहा । पुरुप घर-बार छोड़ कर भाग गए तो उन्होंने स्त्रियों को पकड़ कर कैद कर लिया, उन्हें भाँति-भाँति से बेइज्जत किया। छिपा धन बताने के लिए उन्हें बड़ी-बड़ी यातनाएं दी जाने लगीं। जिन जमींदारों के घर मजबूत गढ़ी के रूप में थे, वे अपने आदमी एकत्र कर चकलेदारों और उनके सिर्की वाले वरकन्दाजों से लड़ बैठे। कहीं-कहीं तो खासा हँगामा उठ खड़ा हुआ। इस पर चकलेदारों के अफ़सर फौजदार साहब ने गाँवों में आग लगवा दो। फौजदार बादशाह के मुंह लगे राजा दर्शन- सिंह थे। अब तक उनका काम इधर-उधर से स्त्रियाँ बटोर कर बादशाह की सेवा में उपस्थित करना था। उनके भय से किसी भी भले घर की बहू-बेटी की इज्जत सुरक्षित न थी। अभी वे एक लाख रुपया काश्मीर से एक लड़की लाने के लिए वसूल कर चुके थे। अब इस काम में भी