पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२६२

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4 अदा की है। बिना औरतों की बेइज्जती किये वे ऐसा करते भला ?" "लेकिन राजा साहब, इलाके पर इलाके सारे उजड़ गए। सब गाँव सूने पड़े हैं । अवध इस वक्त एकदम वीरान हो गया है, जो हिन्दुस्तान का सब से फला-फूला राज्य था।" "तो मैं क्या करूं ? मैंने किसी की जानोमाल पर डाका नहीं डाला । कुछ अाली खानदान के तालुकेदारों की औरतों को माल कचहरी में पकड़ बुलाया था। इसी से शरम के मारे वे लोग देश छोड़ कर भाग गए। मानता हूँ -मार पीट भी करनी पड़ी। पर इस में भी मेरा दोष नहीं है । ये लोग बिना मार पड़े मालगुजारी देते ही न थे।" 'लेकिन कुछ लोग मरे भी तो हैं।" बहुत कम । सौ दो सौ बस।" खैर तो अब इन बीती बातों पर बहस करना फ़िजूल है । रुपया तो पूरा अभी नहीं पाया है।" "जीजान से कोशिश कर रहा हूँ नवाब साहब, फिर आपका नज़राना तो पेशगी ही भेज चुका हूँ।" "शुक्र गुजार हूँ, लेकिन मालगुजारी पूरी अदा होनी चाहिए। चैत की तीसरी तारीख तक खजाने में पचास लाख रुपया पहुंचे बिना काम नहीं चलेगा।" "तो वादा करता हूँ-यह रक़म पूरी कर दूंगा । लेकिन आप भी वादा कीजिए कि आप कभी मेरी कोई हानि न करेंगे।" "आप मुतमय्यन रहें राजा साहब, जब आप हमेशा ही मेरा नज़राना पेशगी भरते रहे हैं, और उम्मीद है-आगे भी ऐसा ही करते रहेंगे, तो मेरे नाराज होने का कोई सवाल नहीं उठता है। लेकिन दोस्त-मन मेजर वेली से होशियार रहना । वह हमेशा मुल्के जमानिया के कान मलता रहता है । और अब तो उसने नया जाल फैलाया है ।" 'अपनी बीबी का सौदा न ?" "जी हाँ, वह पट्टा उस बुड्ढी-ठड्ढी को मुल्के-जमानिया के हाथों -