"तो अब मेरी बारी है ? लेकिन आप अच्छी तरह जानते हैं कि मेरा इसमें कुछ भी कुसूर नहीं "तो क्या ये सब मुक़दमात ग़लत हैं ?" "जनावे आली, इन साले जमीदारों और तालुकेदारों की औरतों को पकड़ कर लाए बिना मालगुजारी का एक धेला भी वसूल न होता । आग़ा- मीर के और अब आप के दबादव हुक्म मेरे पास पहुँचते रहे कि रुपया भेजे । मालगुजारी पूरी वसूल करो। पर कैसे करूँ? यह भी तो सोचिए । पिछली बार की वसूली से सब गांव खेत उजाड़ हो गए। लोग घर बार छोड़ नेपाली इलाकों में भाग गए। इस साल खेती हुई ही नहीं । फिर अकाल पड़ गया। तालुकेदारों व जमीदारों का भी क्या कसूर भला ? रियाया से उन्हें एक पैसा भी वसूल नहीं हो रहा । और लोग दें कहाँ से, उनके पास खाने तक को नहीं है। उधर आपके तक़ाजे । मैं क्या करता? मुझे सख्तियाँ करनी करनी पड़ी। टेटुअा कस कर दबाने ही से जमीदार और तालुकेदारों ने औरतों के जेवर बेच कर या क़र्जा लेकर मालगुजारी २६५
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२६१
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