पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२६८

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से भी वीर और व्यवस्थित है। उसने काश्मीर, पेशावर और मुलतान के इलाकों को विजय कर लिया है। और उसकी नज़र अब सिन्ध पर है। इस नज़र को हटाना ही मेरी मुलाकात का उद्देश्य है । हमारा कैदी काबुल का शाहशुजा इस समय लुधियाने में बन्द है। उसे ही सामने करके और रणजीतसिंह के पल्ले उसे बाँध कर मैं इन दोनों को अफ़गानि स्तान पर हमला करने के लिए धकेल देना चाहता हूँ। और यह बात भी तय कर लेना चाहता हूँ कि सिंध नदी के निचले हिस्सों पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हो जाय और हमें सिन्ध के किनारे-किनारे छावनियाँ बनाने में कोई बाधा न हो।" "बहुत अच्छी योजना है, माई लार्ड, इससे निस्सन्देह उत्तर भारत में हमारे राजनैतिक अधिकार अटल हो जाएँगे और इधर का हमारा साम्राज्य निष्कंटक हो जायगा। लेकिन अवध के इस बदनसीब और खप्ती बादशाह के साथ आप कैसा सलूक करना चाहते हैं।" “सीधी बात है कि जितना जल्द हो अवध को अंग्रेज़ी झण्डे के नीचे लाना हमारा फ़र्ज़ है । मेरा ख्याल है कि अवध के बादशाह को अब और साँस लेने का मौका नहीं देना चाहिए और बादशाह को अपने सब अख्तियारात कम्पनी बहादुर को दे कर पैन्शन लेने पर राजी कर लेना चाहिए।" "माई लार्ड, यह कार्यवाही, शायद समय से पहले होगी, और इस पर हमें अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।" "तुम क्या कहना चाहते हो मेजर, क्या यही वह ठीक मौक़ा नहीं है, जबकि तमाम रियासत में चोरी, डाकेज़नी, लूट की आम वारदातें हो रही हैं । सारा देश ठगों से भरा हुआ पड़ा है, किसी की जानोमाल की खैरियत नहीं है, खेत सूखे पड़े हैं और गाँव उजड़े पड़े हैं, आबादी का नाम निशान नहीं रह गया । अकाल और अराजकता चारों ओर फैली हुई है। क्या बादशाह के अयोग्य, होने के ये काफ़ी कारण नहीं हैं ?" "योर एक्सीलेन्सी, यदि इजाजत दें तो निवेदन करूँ कि इस २.७२