। नाच मुजरों में रात-दिन संलग्न रहते थे। परन्तु लाड वैटिक ने इन सब मनोरंजक समारोहों में सम्मिलित होना अस्वीकार कर दिया। उसने शाही दावत भी मंजूर नहीं की। प्रथम तो वह बादशाह की चाण्डाल- चौकड़ी और छिछोरी सोहबत से चिढ़ गया, जो बादशाह एक बदमाश हज्जाम के साथ दस्तरखान पर बैठ कर खाना खाता है उसके साथ इस तेजस्वी अंग्रेज ने खाना खाना अपनी शान के खिलाफ़ समझा । इस के अतिरिक्त उसकी मुलाक़ात सोलह आना राजनैतिक थी। उसके बंधे हुए मनसूबे थे -और दृढ़ अडिग धारणाएँ थीं। अतः नगर सजाने में जो लाखों रुपया खर्च किया गया था -उसकी भी उसने परवाह नहीं की। उसने रेजीडेण्ट की मार्फत साफ़ कहला दिया था, कि ये सब ऊल-जलूल और फ़ालतू बातें उसे पसन्द नहीं हैं। और वह केवल दरबार में एक बार बादशाह से खुली मुलाक़ात करेगा। यह सुन कर नसीर का दिल बुझ गया। वह खीझ गया और अपने मुसाहिबों में बैठ कर भाँति-भाँति की अटकलबाज़ियाँ लगाने लगा। लार्ड विलियम बैंटिक ने कुल छह दिन लखनऊ में में पूरे चार दिन वह रेजीडेण्ट से तमाम राज-काज के कागजपत्रों- मामलों, संधियों, दस्तावेजों और राज्य की वर्तमान दशा पर विचार- विमर्श करता रहा । इन चार दिनों में वह न रेजीडेन्सी से बाहर निकला न उसने किसी रईस-अमीर या नवाब-बादशाह से मुलाक़ात की। पाँचवें दिन उसने अकस्मात ही दरबार की घोषणा कर दी। नसीर के हाथ-पाँव फूल गए—पर जैसे बना जल्दी-जल्दी-दरबार का प्रबन्ध किया गया। दरबार बहुत ही संक्षिप्त और अनपेक्षित रीति से हुआ । बादशाह. पूरे शाही लिबास में ताज पहन कर तख्त पर बैठे-उनके दाहिनी और गवर्नर-जनरल और बाईं ओर रेजीडेण्ट मेजर वेली सुनहरी कुर्सियों पर बैठे । उनके पीछे उनके शरीर-रक्षक नंगी तलवारें लिए तैनात खड़े हुए। हकीम महदी अली-वजीर आज़म बादशाह की बग़ल में खड़े हुए । बादशाह के मुसाहिबों का इस दरबार में कोई स्थान न था । मुक़ाम किया, जिस
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