साधारण शिष्टाचार और औपचारिक बातों के बाद लार्ड वैटिंक ने एक शाही खरीता पढ़ा जो कि आनरेबुल ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रानरेबुल कोर्ट अाफ़ डायरेक्टर की ओर से आया था। उसमें उन सब बातों के लिए बादशाह को धन्यवाद दिया गया -जिनसे उसकी आर्थिक सहायताओं का संकेत था। बदले में प्रानरेबुल कम्पनी की ओर से दोस्ती का पैगाम पढ़ा गया। इसके बाद गवर्नर-जनरल ने कहा-'योर मेजस्टी को ज्ञात हो कि आप को इसी शर्त पर प्रानरेबुल कम्पनी ने अवध का तख्त इनायत किया है, कि आप ठीक-ठीक रियासत का इन्तज़ाम करेंगे। मगर मैं सुनता हूँ कि आप का खजाना खाली है, मुल्क में बदअमनी फैली है । और आप राज-काज में दिलचस्पी नहीं ले रहे । ऐसी हालत में मैं यदि प्रानरेबुल बोर्ड अाफ़ डायरेक्टर को यह सलाह दूं कि आप को अवध की बादशाहत से उतार दिया जाय और एक माकूल पैन्शन आप के लिए नियत की जाय, तो आप को इस में कुछ उज्र है ?" गवर्नर-जनरल की ऐसी दो टूक बात सुन कर बादशाह की बोलती बन्द हो गई, उसने हकीम महदी अली की ओर देखा। महदी अली एक सुलझा हुआ वजीर और पुराना रईस था । उसने कहा-“हिज एक्सिलेन्सी गवर्नर-जनरल यदि मुझे कहने की इजाजत दें सो अर्ज करूं कि आनरेबुल कम्पनी के प्रथम गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिग्स के जमाने में लखनऊ के जन्नत-नशीन नवाब वजीर आसफुद्दौला ने बहुत सा रुपया दूसरों से क़र्जा लेकर गवर्नर-जनरल बहादुर को दिया था। उनके बाद जब नवाब वजीर सादतअली खाँ गद्दी पर बैठे तो उन सब पावनेदारों ने उन से वह कर्जे का रुपया माँगा। परन्तु नवाब वजीर वह रुपया नहीं चुका सके । तब कर्ज दाताओं ने गवर्नर-जनरल बहादुर से फरियाद की । गवर्नर-जनरल बहादुर ने कोर्ट आफ डाइरेक्टर को लिखा। पर उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस पर ऋण दाताओं ने इंगलैण्ड के बैरिस्टरों की मार्फत लंदन की कोर्ट अाफ-किंग्स वैन्च में आनरेबुल ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध नालिश कर दी। कोर्ट आफ किंग्स बैन्च से
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२७३
दिखावट