बर्षा हो गई। लाचार मैं आप की खिदमत में हाज़िर आया हूँ। आप ही हमारी इज्जत बचा सकते हैं चाचा जान ।" छोटे मिया रोते-रोते चौधरी के पैरों में लोट गए। चौधरी ने ढारस देते हुए कहा-"होंसला रखो बेटे, बड़े भाई ने कोई जुर्म नहीं किया। वे मालगुज़ारी ही लेंगे-या किसी की जान लेंगे । तुम घबराओ मत । अभी मालगुज़ारी अदा करके अपने अब्बा को जेल से छुड़ा लामो । रुपए की फिक्र मत करो।" उन्होंने सुरेन्द्रपाल को बुला कर कहा-"बेटे, अभी तुम भाई के साथ मेरठ चले जानो। तीन तोड़े रुपया नक़द रख लो, दो सिपाही साथ ले लो। यहाँ से तावड़-तोड़ रथ में जाओ। मैं ही चलता -पर लाचार हूँ। मेरठ में हमारे दोस्त ठाकुर रघुराजसिंह हैं, उनके घर चले जाना । वे सब काम आनन-फानन में करा देंगे। बड़ा दब-दबा है उनका कम्पनी के नौकरों पर । कलक्टर के चीफ रीडर हैं । अपने ही आदमी हैं।" सुरेन्द्रपाल और छोटे मियाँ तोड़े लेकर अभी रथ पर सवार हुए ही थे-कि बहुत से लोग गढ़ी में घुस आए । उन्होंने कहा-“चौधरी सरकार की दुहाई-मुक्तेसर का बाज़ार लुट रहा है। सारा बाजार फौज ने घेर रखा है।" इसी समय रामपालसिंह और दूसरे चौधरी के लड़के भी वहाँ प्रा जुटे । सभी के चेहरों पर घबराहट छाई हुई थी। पर चौधरी ने धैर्य से काम लिया और रामपाल से कहा--"बेटा, तू जाकर देख, कौन अफसर है और झगड़े का कारण क्या है, तथा जैसे बन सके झगड़े को रफा- दफ़ा कर । लोग घबराए हुए हैं । और समय खराब है।" रामपालसिंह घोड़े पर चढ़ कर बाजार की ओर चल दिए । फरि- याद करने को जो लोग आए थे--वे भी साथ हो लिए। राह में भागते हुए लोगों को रामपालसिंह ने तसल्ली दी तो वे भी साथ हो लिए। बाजार में पहुँचते-पहुँचते सौ-पचास आदमियों का हजूम रामपाल के २६०
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