पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२८९

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स्पष्ट दीखने लगी। उसे स्त्रियों की चिन्ता हुई। उसने छोटे बेटे सुखपाल से कहा-बेटा, तू ही मेरी सुन, सब स्त्रियों और बच्चों को यहाँ से हटा ले जा, तू मेरठ जा और ठाकुर रघुराजसिंह के यहां सब को छोड़ श्रा । जा, देर न कर । स्त्रियाँ किसी तरह जाने को राजी न होती थीं। परन्तु चौधरी ने किसी तरह सब को बहलों में बैठा कर मेरठ रवाना कर दिया । साथ में जितना नकदी और जेवर जवाहरात थे-वे भी रख दिए । सुखपाल को समझा दिया, तू वहाँ हमारी प्रतीक्षा करना हम भी मेरठ पा रहे हैं। मेरठ में सुरेन्द्रपाल है, ठाकुर है । उनकी सलाह से काम करना। जल्दी न करना। इन सब बातों में दिन बीत गया। दिन ढल रहा था, जब सुखपाल बहलियों में सब स्त्रियों को लेकर मुक्तेसर से निकला । स्त्रियाँ ज़ार-ज़ार रो रही थीं। सब लोग लहू का घुट पिए बैठे थे । क्षण-क्षण का वाता- वरण भारी होता जा रहा था। बहल के साथ दस-बारह हथियारबन्द सिपाही भी सुरक्षा के विचार से थे। सुखपाल बन्दूक लिए घोड़े पर सवार था । मंगला किसी तरह दादा को छोड़ कर नहीं गई। पिता के आघात से वह क्रुद्ध सिंहनी की भाँति अंग्रेज़ों के खून की प्यासी थी। वह दिन भी यों ही बीत गया। शायद मुक्तसर में उस दिन किसी के पर चूल्हा न जला था। बहुत लोग रातों-रात घर-बार छोड़ भाग गए थे। जो रह गए थे-वे सब गढ़ी में एकत्र हो रहे थे । वे सब मरने मारने पर तुले हुए थे। अभी दिन पूरे तौर पर नहीं निकला था कि अंग्रेज़ी सेना ने गढ़ी और हवेली को घेर लिया । सेना के साथ मेरठ का कलक्टर, जिले का मैजिस्ट्रेट और दूसरे अफ़सर भी थे । मैजिस्ट्रेट ने हुक्म दिया कि गढ़ी और हवेली में जितने स्त्री-पुरुष हैं सब गिरफ्तार हो जाएँ । परन्तु इसके जवाब में वहाँ दूसरा इन्तज़ाम हो रहा था । अंग्रेज़ी फौज को आते देख-चौधरी लोग छतों पर बन्दूकें ले लेकर चढ़ गए। सेवाराम एक बन्दूक लेकर गढ़ी के द्वार पर आ डटा । दूसरे लोग भाले-