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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२९०

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- सुर्सी और गंडासे, लाठियां ले लेकर मुस्तैद खड़े हो गए । मैजिस्ट्रेट, मुँह से अभी शब्द निकले ही थे-कि तुरन्त उन पर गोलियों की बौछार होने लगी। जवाब में सेना ने भी बाढ़ दागी । बड़ा भारी शोर और हो- हल्ला मच गया । लोगों ने झरोखों में पत्थर रख कर करारी मार मारनी आरम्भ की--बहुत लोग लाठियाँ सुर्सी भाले-गडासे ले कर सिपाहियों से भिड़ गए। नमक के नाम पर लड़ने वाले सिपाही भाग खड़े हुए। जिले के मजिस्ट्रेट की आँख में एक पत्थर आ लगा-उसकी आँख फूट गई। अब तो यह विग्रह मुक्तसर के विद्रोह का रूप धारण कर गया । कलक्टर ने ताबड़ तोड़ मेरठ से गोरी पल्टन और तोप मंगाई । तीसरा पहर होते-होते तोप और नई फौज आ गई। तोप को हवेली के सिंहद्वार के आगे रख कर अंग्रेज़ कप्तान ने कहा- दस मिनट का समय है, कि गढ़ी और हवेली के सब लोग और चौधरी हथियार रख कर ताबे हो जायँ-वरना सबको तोप से उड़ा दिया जायगा । एक बार चौधरी ने फिर लड़कों से कहा कि वे चुपचाप गिरफ्तार हो जाय । पीछे देखा जायगा । पर लड़के अभी आत्म-समर्पण करने को तैयार न थे। इसी समय एक गोला तोप से छूटा और हवेली के फाटक की धज्जियाँ हवा में उड़ गईं। साथ में जो आदमी फाटक पर थे-उनके हाथ, पैर-धड़ छिन्न-भिन्न हो कर हवा में उछल गए। इसके बाद बन्दूकों की बाढ़ दगी । फिर तोप का धड़ाका । हवेली का सामने का भाग समूचा ही तहस-नहस हो गया। कुछ लोग मलबे में दब गए और मर गए । बहुत लोग कायल हो कर चीखने-चिल्लाने और हाय-हाय करने लगे। इसी समय एक और गोला गिरा जिसने हवेली के भीतरी हिस्से में आग लगा दी। अब चौधरी काँपता हुआ उठा। वह लाठी टेकता हुआ बाहर आया। उसने हवा में सफेद रूमाल फहराया । बन्दूकों की बाढ़ रुक गई। २६४