पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२९३

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1 क छोटे मियाँ पर कैसी बीती तथा वह कहाँ हैं । पर इस समय तो वे धरी की हालत देख कर अधीर हो गए। उनकी आँखों से चौधारे सू बहने लगे। वे चौधरी को गोद में लेकर या-खुदा या-खुदा के नारे गाने लगे। मेरठ की जेल में भी हलचल मच गई। मुक्तेसर के ग़दर और क़त्ल तथा चौधरियों की गिरफ्तारी के ऊपर मंगला के बलिदान के क़िस्से भाँति-भाँति का रूप धारण करके लोगों की ज़बान पर चढ़ गए। । लोग भाँति-भाँति की बातें करने लगे। अंग्रेज़ों को गालियाँ देते और उन्हें क्रोध भरी नज़र से देखने लगे। चौधरी और उनके बेटों ने अपनी प्यारी लाडली बेटी मंगला के कोमल अंगों को तोप से उड़ते हुए अपनी आँखों से देखा था। छोटे चौधरी अभी तरल आँखों में खून भरे मरने मारने पर तुले बैठे थे । वे चाहते थे, सामने दो-दो हाथ करके जवाब दे दें। बूढ़े चौधरी बदहवास थे। वे आँखें फाड़-फाड़ कर चारों ओर देख लेते । कभी हंस पड़ते। कभी मंगला का अक्सर नाम उनके मुंह से निकल जाता। कभी वे अस्पष्ट शब्द बड़बड़ाने लगते । कभी एकदम मुर्दे की तरह गिर जाते । उन की चिकित्सा और देख-भाल का कोई प्रबन्ध कम्पनी सरकार की ओर से नहीं किया गया था। परन्तु मेरठ जेल का जेलर सहृदय था। उसने उन्हें बड़े मियाँ की देख-रेख में छोड़ दिया। बड़े मियाँ के ऊपर कोई संगीन जुर्म न था । बक़ायदा लगान न देने ही से वे जेल भेजे गए थे—इसके अतिरिक्त उनकी बुजुर्गी-गम्भीरता-व्यक्तित्व भी ऐसा था कि जिस से अंग्रेज़ जेलर प्रभावित हुआ था। उसने उन्हें जेल में सब सम्भव सुविधाएं दे रखी थीं। इसी से जहाँ सब चौधरी अलग-अलग कोठरियों में हथकड़ी बेड़ी से जकड़ कर बन्द कर दिए गए वहाँ प्राणनाथ चौधरी की हथकड़ियाँ खोल दी गईं और उन्हें बड़े मियाँ की देख-रेख में खुला छोड़ दिया गया। बड़े मियाँ प्रारणपन से चौधरी प्राणनाथ की प्राण-रक्षा की चेष्टा करने में लग गए। २९६