पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/२९४

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ठाकुर रघुराजसिंह के प्रभाव और दौड़-धूप से बड़े मियाँ और चौधरी प्राणनाथ जेल से छूट गए। बड़े मियाँ की मालगुजारी अदा कर दी गई। पर उनकी ज़मींदारी नीलाम कर दी गई थी-- ---अतः अब बड़ागांव उन के तहत में न रह गया था। सुखपाल, सुरेन्द्रपाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया । हाँ, जो धन-रत्न मुक्तसर से निकल आया था उसमें से जो कुछ इस छुटकारे में खर्च हुआ उसे दे कर शेष बच रहा था । बड़े मियाँ को अब अपनी ज़मींदारी की चिन्ता न थी। वह मेरठ रह कर अब चौधरी प्राणनाथ की सेवा-सुश्रुषा करने में लग गए । सब अभियुक्तों का चालान कलकत्ता कर दिया गया। जहाँ सुप्रीम- कोर्ट में उन पर मुक़दमा चलने वाला था।

४३ :

भाग्य के हेर फेर बड़े मियां की बड़ी अथक सेवा-सुश्रुषा और दौड़-धूप कुछ भी कार- गर न हुई, चौधरी प्राणनाथ की प्राण रक्षा न हो सकी । अनेक चिकि- त्सकों को बुलाया गया, पर व्यर्थ । वे कभी-कभी कुछ होश में आते तो अस्फुट स्वर में मंगला का नाम लेते । पहचानते किसी को नहीं । बड़े मियां कहते-भाई जान, मुझे नहीं पहचाना? तो वे कांपती उंगलियाँ ऊपर उठा कर अस्फुट वाणी में कहते-तुम फिरंगी हो-लेकिन मेरी बेटी को मत मारो, मुझे बाँध लो। फिर वे बेहोश हो जाते । रोते-रोते बड़े मियां की दाढ़ी भीग जाती । खाना-पीना सोना उन्होंने सभी तर्क कर दिया, अपने इकलौते बेटे तक से न बोलते। छोटे मियां उन्हें राहत पहुँ- चाने की चेष्टा करते, पर ऐसा प्रतीत होता था कि मस्तिष्क उनका भी आहत हो चुका था। तीन महीने प्राणनाथ जीवित रहे। और अन्त में बड़े मियां की गोद में सर रख उन्होंने प्राण त्यागा। मरने से कुछ पहले उनके होश- हवाश ठीक हो गए। उन्होंने बड़े मियां को पहचाना, मुस्कराए । फिर ३००