पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अंग्रेज़ी पढ़ा दूल्हा न जंचेगा । और शादी वह धूम की करना कि चौरासी गाँवों में धूम मच जाय ।" चौधरी के चेहरे पर उदासी छा गई। इन्होंने एक ठण्डी साँस खींच कर कहा--"अब इस की क्या उम्मीद है भाई साहब, जो घड़ी बीतती है, गनीमत है । खैर, यह कहो--इस वक्त तकलीफ़ कैसे की ?" "यों ही चला आया, बिटिया को देखने को दिल बेचैन था। छोटे मियाँ भी आप को सलाम करना चाहते थे।" इतनी देर तक छोटे मियाँ की ओर तो दोनों बूढ़ों ने ध्यान ही नहीं दिया था । अब चौधरी ने कहा-"होनहार हैं, ज़हीन हैं, ईश्वर ने चाहा तो नेकनामी और इज्जत का वह रुतबा हासिल करेंगे कि जिस का नाम ।" उन्होंने प्रेम से छोटे मियाँ की ओर देखा । उन का हाथ पकड़ कर अपने पलंग के पास खींच गोद में बैठा लिया। बड़े मियां ने कहा- "चौधरी चचा को मुरिर सलाम करो बेटे ।" छोटे मियाँ ने अदब से खड़े हो कर चौधरी को सलाम किया । "जीते रहो, जीते रहो बेटे !" चौधरी ने प्रेम विभोर हो कर कहा । “हाँ, तो अब पढ़ाई कितनी बाकी है ?" "बस एक साल की। फिर डिग्री मिल जायगी।" "बहुत खुशी की बात है। तो अगले साल कोई अच्छी सी लड़की देख कर शादी तय कर डालो बड़े भाई । क्या कहीं से पैग़ाम आया है ?" "बहुत--मगर मैंने मंजूर नहीं किया। तालीम खत्म हो जाय तो देखा जायगा । उधर मिर्ज़ा ज़ोर लगा रहे हैं कि हज चलो । हील-हवाला करते चार साल हो गए । अब सोचता हूँ ज़िन्दगी का क्या भरोसा, नदी किनारे का दरख्त हूँ । जाऊँ, हज कर आऊँ ।" "क्या हर्ज़ है, सवाब की बात है।" "लेकिन मियाँ तो अभी कुछ समझते ही नहीं। बस किताबों में ही ध्यान रखते हैं।" ३६