पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/३९

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"अच्छा साहेबजादे, यह काग़ज़ तुम रख लो।" "चाचा जान, मैं अर्ज करता हूँ। फिरंगियों ने मुझे एक नया सबक़ सिखाया है, उम्मीद है आप उसे पसन्द करेंगे।" "कौन-सा सबक़ है बेटे ?" "कि अपने पसीने की कमाई खाओ।" "अच्छा सबक़ है।" "इसी से आप इसरार न कीजिए। और यह रसीद अपने ही पास रखिए । अब्बा हुजूर आपका रुपया ब्याज समेत चुकता कर देंगे, तो यह रसीद ले लेंगे।" "तो बेटे, तुम अपने इस बूढ़े चचा की इतनी-सी बात टालते हो ?" "चाचा जान, यह उसूल की बात है।" "बेटे, तुम जानते हो, मैं बूढ़ा आदमी हूँ, कमजोर हूँ, बीमार हूँ, मेरा दिल टूट जायगा । अगर तुम यह काग़ज़ न लोगे।" चौधरी की आँखों से आंसू बह चले । बड़े मियाँ न कहा- "चौधरी, छोटी रक़म नहीं है, चालीस हज़ार से ऊपर ही की रकम होगी। आखिर खुदा के सामने मैं क्या जवाब दूंगा।" "तो तुम ने मेरा दिल तोड़ दिया बड़े भाई,” चौधरी ने कातर कण्ठ से कहा। बड़े मियाँ की भी आँखें भीग गईं, उन्होंने कहा—'खैर, एक वादा करें तो मैं मियाँ को रसीद लेने की इजाजत दे सकता हूँ।" "कैसा वादा ?" "कि जब भी रुपये का बंदोबस्त हो जाए, रुपया आप ले लेंगे।" "खैर यही सही। अच्छा यह सम्हालिए।" "यह क्या?" "यह दो तोड़े हैं, मालगुजारी भी अदा कर दीजिए और हज भी कर आइए । कम हो तो खबर भेज दीजिए, रुपया और पहुँच जाएगा।" "लेकिन ४२