पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/४७

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प्रसन्न मुद्रा से कहा--"प्रानो चौधरी, आगे बढ़ो। और तुम- कल्यान, मेरे पास आयो । लाठी फेंक दो।" कल्यान ने नीचे सिर झुका लिया । वह चुपचाप चौधरी के पीछे प्रा खड़ा हुआ । सहमते-सहमते लखनऊ का मेहतर आगे बढ़ा-और बड़े मियाँ ने दोनों बाहों में उसे बांध लिया। अपने हाथ से उसके कंधे पर दुशाला डालते हुए कहा--"कल्यान. ये दोनों तोड़े अपने हाथ से मिलनी में समधी को दे दो।" "दुहाई सरकार, ऐसा तो न देखा न सुना।" लखनऊ वाला भंगी भी दुशाला कन्धे से उतार कर बड़े मियाँ के कदमों पर लोट गया। उसने कहा, "बेशक कल्यान, ऐसा न कभी किसीने सुना, न देखा, न किसी ने किया। परन्तु याद रखना, यह ग़रीब परवरी मैं चौहद्दी में मशहूर कर दूंगा। और यह दुशाला मेरे खानदान में हमेशा पूजा जायगा । आगे आने वाली पीढ़ियां इस का साखा गाएँगी।" "अरे निहाल हो गया नकटे, ले ये तोड़े सम्हाल।" "इन्हें लुटादे ग़रीबों को, मेरे सरकार के क़दमों पर निछावर कर के मैं रुपयों का भूखा नहीं, मुझे मिलनी देकर मेरी सात पुश्तों को सरकार ने तार दिया । अब लोग साखे गाएंगे और कहानियां कहेंगे, कि बड़े गाँव के बादशाह ने अपने गाँव के भंगी की बेटी के ब्याह में भंगी को समधी की मिलनी दी थी। लूट लो यारो, ये रुपए, और यह भी लो । उसने फेंट से अशर्फियों का तोड़ा निकाल कर बखेर दिया, गले का सोने का कण्ठा तोड़ कर उसके दाने हवा में उछाल दिए, फिर वह उन्मत की भाँति हो-हो करके हंसने और नाचने लगा । देखते-देखते रुपए-अशर्फियों और सोने की लूट मच गई। बड़े मियाँ की सखावत, बड़प्पन और दरिया दिल्ली की धूम मच गई, तवायफों ने उसी वक्त क़सीदे कहे, भाड़ों ने नई नक़ले की और शायरों ने नए बंधेज गाए। कल्यान की लड़की का ब्याह हो गया। बड़े मियाँ धीरे-धीरे लाठी का सहारा लिए अपनी गढ़ी में लौट आए ।