पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/४६

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"साला चोट्टा, नखलऊ जाकर सारी बिरादरी में शेखी बघारेगा, कि बड़े गाँव की बेटी ब्याह लाया हूँ । सरकार ने खुद समधी की मिलनी दी है।" "वह कहाँ है ?" "वह क्या गुड़गुड़ी मुँह से लगाए मुँह फुलाए बैठा है चोट्टा।" "तो उसे यहाँ बुलाओ कल्यान मियाँ ।” "हुजूर, वह आप के सामने बेअदबी कर बैठेगा तो नाहक खून हो जायगा । बस हुक्म दीजिए-झाडू मार कर गाँव से बाहर करूँ।" "उसे यहाँ बुलाओ।” "लेकिन सरकार' "हमारा हुक्म तुमने सुना नहीं कल्यान ।" कल्यान का और साहस नहीं हुआ । जा कर समधी को बुला लाया। उसके आते ही बड़े मियाँ दुशाला छोड़ कर खड़े हो गए। दोनों हाथ फैला कर कहने लगे--"प्रायो चौधरी, मिलनी कर लें। यह मैं अपनी बेटी तुम्हें दे रहा हूँ, भूलना नहीं।" लखनऊ का मेहतर मूछों में हंसता हुआ आगे बढ़ा । सारे भंगी दंग रह गए। चारों ओर से भीड़ प्रा-जुटी । कल्यान मोटा लठ्ठ लेकर मियाँ और लखनऊ वाले के बीच खड़ा हो गया, उसने जोर से चिल्लाकर कहा- 'नहीं हो सकता, जान से मार ही डालूंगा चौधरी, जो आगे क़दम बढ़ाया। अबे भंगी के बच्चे, तेरी यह मजाल, कि तू हमारे बादशाह से मिलनी लेगा, जो लाल किले के शहनशाहे हिन्द के रिश्तेदार हैं। लेकिन लखनऊ का चौधरी शान्त शिष्ट और दृढ़ खड़ा था, अचल-अडिग, ओठों में मुस्कान भरे हुए । चारों और तमाशाइयों की भीड़ जमा होती जा रही थी । भांड-भडेलों के तमाशे बन्द हो गए, रंडियों के मुजरों में सन्नाटा छा गया, दौड़ पड़ा। कभी न देखा न सुना दृश्य सामने था, जाजम पर बौरासी बरस के बड़े मियाँ, जिन की रियासत और बड़प्पन की धूम दिल्ली के लाल किले तक थी, जो बाईस गांवों का राजा था, शान्त प्रसन्न मुद्रा से दोनों बांह पसारे खड़ा था, मेहतर से बग़लगीर होने के लिए। उन्होंने 1 जिसने सुना 7