पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/५८

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युद्ध में इसी से अंग्रेजों का साथ दिया था । युद्ध के बाद इन सब को बड़े- बड़े इलाक़ दिए गए-और रणजीतसिंह का राज्य तो इस युद्ध के बाद काफ़ी विस्तार पा गया । दुर्भाग्य से प्राणनाथ ने इस युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध सिंधिया के पक्ष में हथियार उठाया था। क्योंकि उस का इलाक़ा सिंधिया ही की अमल- दारी में था । युद्ध के बाद पंजाब के उन इलाक़ों में, जो सिंधिया के प्रभाव में थे, अराजकता-मार-काट-और लूट-पाट का बाज़ार खूब गर्म हुआ। सिंधिया के समर्थकों पर दुहरी मार पड़ी। अंग्रेज़ ढूंढ-ढूंढ़ कर सिंधिया के साथियों का कत्ले-आम कर रहे थे, और जिन सिख सरदारों ने सिंधिया के विरुद्ध अंग्रेज़ों का पक्ष लिया था, उन्हें अग्रेजों ने ढील दे दी थी कि वे जहाँ चाहें-जहाँ अवसर मिले-जितना चाहें सिंधिया के अमल के गाँवों को अधीन कर लें, सिर्फ-कम्पनी बहादुर का अमल मानें और अंग्रेजों को खिराज दें। इस ढील से छोटे-छोटे सिख सरदारों ने खूब लम्बे-लम्बे हाथ मारे थे। चौधरी प्राणनाथ को सिंधिया ने पटियाला के निकट पण्डरावल का इलाका दिया हुआ था । वे बड़े दबदबे के आदमी थे। पटियाले के आस-पास की सीमाओं पर इस समय धाँधलेबाजी चल रही थी। सतलुज के इस पार के पैंतालीस गाँव चौधरी प्राणनाथ की जागीर में थे। अब उन का सिंधिया का तो सहारा जाता ही रहा था, लाहौर दर्बार से भी उन्हें कुछ आशा न थी। अंग्रेजों से सन्धि करके रणजीतसिंह अन्धाधुन्ध अपने पैर पसार रहा था । स्वतन्त्र सिख सरदारों की टोलियाँ, और अंग्रेजी सिपाही सतलुज इस पार के इलाकों में बेधड़क घूमते, गाँवों में घुस जाते, लूट मार और बलात्कार के बाद गाँवों में आग लगा देते, फ़सलों-खेतों को जला डालते थे। इन सब मार-काट और उपद्रवों से तंग आ कर और अंग्रेजों से त्रस्त हो कर चौधरी प्राणनाथ ने इस इलाके को छोड़ कर द्वाबे में या बसने की ठान ली। और इलाका त्याग सपरि- वार इधर चले आए।