सोना और खून सोने का रंग पीला होता है और खून का रंग सुर्ख । पर तासीर दोनों की एक है । खून मनुष्य की रगों में बहता है, और सोना उस के ऊपर लदा हुया है । खून मनुष्य को जीवन देता है, और सोना उस के जीवन पर खतरा लाता है। पर आज के मनुष्य का खून पर मोह नहीं है, सोने पर है। वह एक-एक रत्ती सोने के लिए अपने शरीर का एक- एक बूंद खून बहाने को आमादा है। जीवन को सजाने के लिए वह सोना चाहता है, और उसके लिए खून बहा कर वह जीवन को खतरे में डालता है । आज के सभ्य संसार का यह सब से बड़ा कारोबार है । सब से बड़ा लेन-देन है, खून देना और सोना लेना सोना और खून के इस लेन-देन ने आज मनुष्य ही को मनुष्य का सब से बड़ा खतरा बना दिया है। उस का सब से बड़ा दुर्भाग्य यह है कि वह बुद्धिमान् है। सोना और खून के इस कारोबार ने उस के सारे बुद्धिबल को उस के अपने ही विनाश में लगा दिया है ; और अब विनाश ने उसे चारों ओर से घेर लिया है । जिन्दा रहने की उस की सारी ही चेष्टाएँ अब हास्यास्पद हो गईं हैं। वह मनुष्यता का बोझ अपने कन्धों पर लादे हुए, थकावट से चूर-चूर, पसीने से लथपथ, विश्राम की खोज में भटक रहा है । और मौत उसे कह रही है-यहाँ आ, और मेरी गोद में विश्राम कर।
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/६
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