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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/७

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सुधारक लोग सुपने देखते हैं, कि ज्ञान और सदाचार मनुष्य के दुःख-दर्द हर लेंगे। मनुष्य का जीवन सफल होगा । जेलखाने ढहा दिए जाएंगे। फांसी के तख्ते दुनिया से उठा दिए जाएंगे। जेल की काल कोठरियाँ प्रकाश से जगमगा उठेगी। कोई दरिद्र न रहेगा। कोई भीख के लिए हाथ पसारता नज़र न आएगा । सारे मनुष्य समझदार, सदाचारी और सुखी हो जाएँगे, किन्तु कब ? ये सुपने तो उन्होंने युग-युग से देखे हैं, और युग-युग तक देखते रहेंगे।

- असभ्य युग का आदमी भी मन का कमज़ोर-भीरु और आलसी था। वह जो देखता था, उसे ही समझता था। विपत्ति पड़ने पर प्रकृति से परे किसी अदृष्ट शक्ति को खोजता था। सहस्राब्दियों तक वह बलि- दानों, प्रार्थनाओं और अलौकिक पूजाओं से उस की उपासना करता रहा। बहुत धीरे-धीरे बड़े कष्ट से उस की विचार-सत्ता विकसित हुई। -- मन शरीर का सहायक बना, विचार और परिश्रम एकत्र हुए, मनुष्य की उन्नत्ति का सूत्रपात हुआ, कि उसे सोना मिल गया। उस ने तत्काल ही खून से सोने का लेन-देन आरम्भ कर दिया । और देखते ही देखते वह घनघोर युद्धों के बीच में जा फंसा । जिन्होंने उसे कर्जदार, दिवालिया और असहाय बना दिया । इस नए युग का नया खूनी देवता है—देश । इस देवता ने इस सभ्य युग में जन्म ले कर दुनिया के सब देवताओं को पीछे धकेल दिया। आज वह संसार के मनुष्यों का सब से बड़ा देवता है । असभ्य युग में, असभ्य जातियों ने कभी भी किसी देवता को इतनी नर-बलि न दी थी, जितनी इस सभ्य युग में इस खूनी और हत्यारे देवता को मनुष्य ने दी है, और देता जा रहा है। इस भयानक देवता के खून की प्यास का अन्त